शुक्रवार, 26 नवंबर 2010

गधा पंजीरी

बुद्धिमान जब किसी भी काम में पीछे रह जाये और बेवकूफ़ उसी काम में अपने को आगे निकाल ले जाये तो पुराने जमाने से एक कहावत कही जाती है-"तेज बुद्धि घोडा बंधे,या भजि भजि  मरि जांय,माया तेरे राज में गधा पंजीरी खांय",इस कहावत को आज के जमाने में बहुत ही सोच समझ कर लोग प्रयोग में ला रहे है। जितनी अधिक शिक्षा हो जायेगी उतने ही कानून आने लगेंगे,और जितने कानून आने लगेंगे उतना ही आदमी को कानून से डर लगने लगेगा,कानून से डरने के कारण वह न तो कुछ कर पायेगा और न ही आगे बढ पायेगा। लेकिन जिस कानून से इतना डर डर कर वह चला उसी कानून ने समय पर कोई सहायता नही की तो कम से कम कानून की तरफ़ से मन तो खट्टा हो ही जायेगा। उन्ही कानूनो से बच कर चलने की और कानून के विरुद्ध कार्य करने की मानसिक अभिलाषा तो बनने ही लगेगी। जब कानून से विरुद्ध कार्य किया जाने लगेगा तो अपने आप से ही उन्नति सामने आने लगेगी। उन्नति को देखकर कौन कानून जानने वाला उक्त कहावत को नही कहेगा। उत्तर प्रदेश का मैनपुरी जिला इस मामले में बहुत ही तेज है,जिसे देखो कानून को हाथ में लेकर चलने से मतलब रखता है। वहां के थानों में भी उन्ही लोगों को नौकरी दी जाती है जो अपने में चलते पुर्जा लोग होते है,किसी से भी अगर उलझ जाओ तो सीधे मुलायम सिंह और मायावती से कम बात ही नही करता है,और मुझे यह भी समझ में नही आता है कि इन लोगों के पास इतना समय कैसे होता है जो फ़ोन करते ही आदेश दे देते है। हर कोई बिना बन्दूक के नही चलना चाहता है,जिसे देखो वही कलक्टरी में अपने लिये लाइसेंस बनवाने के लिये अपनी अर्जी को पेश किये दिखाई देता है,एम एल ए तो इसी बात की फ़िराक में रहते है कि कब किसका लाइसेंस बनवाना है और किसे रद्द करना है। अगर कोई कार्य एक नम्बर से नही होता है तो दो नम्बर से बनवाने के लिये कोई न कोई हाजिर हो ही जाता है। जब जिला से कोई लाइसेंस नही बना तो लोगों ने सीधे ही जम्मू काश्मीर की सरकार से दो नम्बर में लाइसेंस लेने शुरु कर दिये। अब प्रशासन को भी फ़ुर्सत कहां है कि वह चैक करता फ़िरे कि किसके पास कहां का लाइसेंस है,जब कोई वारदात हो जाती है तो प्रशासन को देखने की जरूरत पडती है। इतने नेता हमारे जमाने में नही थे,लोग उन्ही को नेता कहा करते थे जो किसी न किसी प्रकार से अपने को राजनीति से जोड कर रखते थे और किसी चोरी डकैती या किसी के लिये अचानक सहायता या किसी प्रकार की राजनीतिक दखलंदाजी में दिक्कत से बचाने के काम आती हो,अधिकतर वही स्वतंत्रता संग्राम सैनानी भी हुये है जो मैनपुरी धान बेचने के लिये भैंसा गाडी में जाया करते थे,रास्ते में गाडी का रस्सा टूट गया तो सडक के किनारे गडे टेलीफ़ोन के खम्भे से तार तोडने के बाद गाडी की रस्सी की जगह बांधने के लिये टेलीफ़ोन के खम्भे पर चढे इतने में अंग्रेजी सरकार की जीप आयी और तार काटने के चक्कर में बन्दी बना दिये गये उस समय के कानून से जो भी सजा हुयी उसी के अनुसार स्वतंत्रता के बाद उन्हे जेल में नाम लिखा होने के कारण स्वतंत्रता संग्राम में शामिल होने वाले और देश को स्वतंत्र करवाने वाले लोगों में जोड दिया गया। कभी कभी तो इस प्रकार के स्वतंत्रता संग्राम सेनानी अपने को अकेला बैठने पर सोचा ही करते होंगे कि अगर रस्सी भैंसागाडी से नही टूटी होती तो आज उन्हे घर बैठे पेंसन नही मिल रही होती,उसके बाद उन्हे यह भी ख्याल आता होगा कि जो लोग उस समय उन्हे अकेला छोड कर भाग गये थे,वे आज भी धान के खेतों में पुर्र पुर्र करते घूम रहे है,अगर वे भी पकडे गये होते तो आज वे भी मजे से एयरकंडीशन में सफ़र कर रहे होते और घर बैठे पेंसन आ रही होती,लडके और बहुयें उन्हे भी सिर पर बैठाकर चल रहे होते,जहां भी पंचायत होती उन्हे भी पहले पुकारा जाता। घर पर पढाई का साधन नही था,जो शिक्षा पूरी हो नही पायी,केवल जानवरों को चराने और सुबह शाम चारा पानी करने के अलावा कोई काम नही था,चाचा ने बडी मुश्किल से ओलम बारह खडी सिखा दी थी,वह भी काम के आगे आधी अधूरी याद रही। घर पर किसी बात पर तू तू मैं मैं हुयी घर से भागकर शहर की तरफ़ चले वहां पर फ़ौज की भर्ती हो रही थी,जाकर लाइन में खडे हो गये,जानवर चराने के कारण शरीर तो लम्बा चौडा हो ही गया था,और जंगलों में जानवर चराने वालों के साथ अखाडे तो तोडे ही जाते थे,इसलिये फ़ौज में सलेक्सन भी हो गया। घर वालों को दो महिने बाद किसी से फ़ौजी लेटर लिख कर डलवा दिया कि फ़ौज में भर्ती हो गये है,छ: महिने बाद रंगरूटी से छुट्टी मिलेगी तभी गांव आ पायेंगे। छ; महिने बाद गांव आये तो लडका फ़ौज में भर्ती हो गया है,शादी वाले भी आकर दरवाजा खूंदने लगे,और अच्छी दहेज की मार से शादी भी पक्की हो गयी,शादी भी हो गयी,पत्नी दस महिने मायके में और बाकी के छुट्टी के दिनो में ससुराल में जीवन को बिताने लगी,एक दिन फ़ौज में ही गस्त के समय पैर फ़िसला पत्थरों की खडवडाहट और शोर सुनकर दुश्मन ने गोली चलानी शुरु कर दीं,भाग्य से गोली सिर में लगी और शहीद हो गये,दूसरी साल ही गांव के मुख्य चौराहे पर मूर्ति स्थापित हो गयी पत्नी को इतना धन मिल गया कि वह मायका और ससुराल छोड कर सीधी शहर में जा बसी।

शहर में भी पढाई पूरी हो नही पायी अम्मा पिताजी गांव से आये थे सो इतना ही कमा पाते थे कि एक बार की रोटी ही मिल जाती वह क्या कम थी,अब बडे हो गये तो पिताजी ने नौकरी किसी प्राइवेट फ़ैक्टरी में लगवा दी,रोजाना नौकरी पर जाना और रोजाना आना तन्ख्हा मिली वह सीधे से आकर अम्मा को दे देना,एक बार दोस्तों के साथ तन्ख्हा मिलने के बाद पिक्चर चले गये,आधी तन्खाह पिक्चर की भेंट चढ गयी घर आकर डांत पडी और दूसरे दिन से नौकरी छोड दी,भाग्य से चुनाव हो रहे थे,एक प्रत्यासी के साथ लग गये,उसी के साथ रहना और उसी के साथ खाना कभी कभार घर आये तो आये नही तो कोई बात नही कहीं भी सो गये,भाग्य की बात प्रत्यासी जीत गया,जब चुनाव में साथ दिया तो उसका भी फ़र्ज साथ देने का बनता था,एक ठेका आपके नाम से दिलवा दिया,आधी आधी कमाई का इशारा था,करना क्या था काम तो दूसरे ठेकेदार को करना था,केवल नाम ही तो आपका था,और कमाई होने लगी तो अम्मा पिताजी का ख्याल आया एक बढिया मकान भी बनवा दिया और जिस ऐरिया में मकान बनाया था एक नेता के रूप में पहिचान होने लगी,किसी का पुतला जलाना है किसी के बारे में गालियां देनी है सरकारी अफ़सरों को काम से रोकना है सडक बन्द करनी है किसी आफ़िस में जाकर हल्ला मचाना है पत्थर फ़ेंककर गाडियों को तोडना है सभी काम आसानी से होने लगे और अगले चुनाव में साथी उम्मीदार को तो जीतना था ही नही विरोधी पार्टी में टिकट का बन्दोबस्त हो गया,और भाग्य की बात जीत भी गये,अब क्या था,जो करना था वह कर रहे है,बाकी के कानून जानने वाले और साथ पढने वाले अभी भी नौकरी की तलास में भटक रहे है।

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