सोमवार, 22 नवंबर 2010

चलता फ़िरता दर्द

यह शरीर पंच तत्वों से बना है,जब हमने जन्म लिया था तब जो ग्रह अपने अपने तत्वों को जहां पर स्थापित किये थे वहीं पर उन तत्वों का वर्गीकरण स्थापित हो गया था,लेकिन गोचर करने के साथ जो ग्रह अपना अपना तत्व शरीर में घुमाने की क्रिया से प्रभावित करते है उन्ही तत्वों से शरीर के प्रति कारण और निराकरण सामने आने लगते है। शरीर में दो कारक अपने अपने लिये निरन्तर कार्यरत होते है,एक तो गुरु की हवा जो सांसों के रूप में अपना कार्य करती है,और दूसरा शरीर के अन्दर का खून जो लगातार अपनी क्रियात्मक शक्ति के द्वारा अपने को पूरे शरीर में निरंतर गतिमान बनाकर चलता रहता है,खून का कारक मंगल होता है,लेकिन खून के पतले और गाढे होने का पता चन्द्रमा की स्थिति के अनुसार माना जाता है,खून की गति भी गुरु और चन्द्र पर निर्भर करती है,जितनी तेज सांसों का चलना होगा उतनी तेज गति से खून की चाल होगी,यह अन्दाज अक्सर हम कठिन मेहनत करते वक्त या भागते दौडते वक्त लगा लेते है। शरीर में गर्मी की मात्रा अधिक हो जाती है तो चन्द्रमा शनि की सहायता लेता है,और पानी की मात्रा को त्वचा की तरफ़ धकेल देता है,त्वचा से पानी की मात्रा पसीने के रूप में बाहर आती है और बाहरी हवा के संसर्ग से वह अधिक शीतलता को प्राप्त करती है,जिससे शरीर के अन्दर की गर्मी शांत होती है। इसी खून के अन्दर जब राहु का प्रभाव मिलता है तो खून के अन्दर कई तरह के कैमिकल मिल जाते है और वह कैमिकल या तो हवा के द्वारा शरीर में प्रवेश करते है या फ़िर पानी के या भोजन के द्वारा शरीर में मिलते है,लेकिन जिन लोगों का गुरु अष्टम में या वृश्चिक राशि में वक्री होता है उन के लिये यह गन्दे कैमिकल अपान वायु के शरीर में वापस चढने से भी खून के अन्दर मिल जाते है। यह उन लोगों के साथ जरूर होता है जो जल्दी जल्दी से यात्रा वाले कार्यों से जुडे होते है,या उनका कार्य बैठे बैठे सोचना अधिक होता है,राहु जब गोचर से चन्द्रमा के साथ विचरण करता है तो लोगों के अन्दर यह अपने रूप में मानसिक चिन्ताओं को प्रदान करता है,इस प्रकार से चिन्ता करने से दिमागी गति अस्थिर हो जाती है और भोजन कब करना है पानी कब पीना है,कब घूमने जाना है कब सोना और कब जगना है इस प्रकार से व्यक्ति की सभी दैनिक क्रियायें अधिक अस्त व्यस्त हो जाती है,इस कारण से जो भोजन किया जाता है वह या तो पच नही पाता है और एक जगह पर आंतों में इकट्ठा रहकर सडने लगता है,सडन से जो अपान वायु बनती है वह सही तरीके से पास नही हो पाती है और शरीर की वायु चूसक गृन्थियों से खून के अन्दर आक्सीजन प्रदान करने वाले सिस्टम के साथ मिल जाती है,इस प्रकार से वह खून जहां जहां से गुजरता है वहां पर वह नशों के अन्दर या तो रुकावट देता है या नशों के अधिक या कम फ़ैलाव के कारण दर्द उत्पन्न करता है,जब यह वायु विभिन्न स्थानों से गुजरती है तो विभिन्न स्थानों पर दर्द होता है। एक स्थान पर रुक कर दर्द होता है तो उसकी पहिचान होती है लेकिन अलग अलग दर्द कभी कभी कहीं और कभी कहीं होता है तो व्यक्ति की दिन चर्या बिगड जाती है उसके लिये चाह कर भी कार्य करना दूभर हो जाता है। यह क्रिया बिगडे हुये जुकाम में भी देखी जाती है,जैसे चन्द्र शनि की युति में शरीर का पानी कफ़ के रूप में जमा हो जाता है और अक्सर जिसकी कुण्डली में केतु कर्क राशि का होता है उनकी कुंडली में जब भी शनि कर्क वृश्चिक और मीन राशि में होता है तथा शनि का जन्म से या गोचर से वृष कन्या या मकर राशि में होता है तो इस प्रकार के लोगों का जुकाम किसी न किसी कारण से जरूर बिगडता है और उस कफ़ के एक स्थान पर जमा हो जाने से या गर्म दवाइयां लेने से अधिक एन्टीबायटिक दवाइयों के प्रयोग से भी कफ़ जमा हो जाता है उस कफ़ के जमा होने से शरीर की वसा कभी किसी स्थान पर और कभी किसी स्थान पर अपनी जकडन को पैदा करती है तब भी जातक के शरीर में कभी कहीं और कभी कहीं दर्द पैदा होता है,अक्सर चन्द्र शनि की युति में केतु के प्रभावित होने के समय शरीर के जोड दर्द करते है और हाथ पैरों के जोड दर्द करने लगते है।

जैस कोई बीमारी बनी है तो बीमारी का इलाज भी बना है,इस संसार में जितनी भी बीमारी है उनका इलाज भी उतना ही है,कोई भी बीमारी लाइलाज नही है,लेकिन पहिचान करने वाले जब बीमारी को नही पहिचान पाते है या बीमारी वाला व्यक्ति अपने इलाज के लिये किसी दूसरी बीमारी को दूर करने वाले डाक्टर के पास चला जाता है तो वह डाक्टर अपनी जानने वाली बीमारी के अनुसार ही दवा देना शुरु कर देता है,और जो बीमारी थी उसका इलाज तो हो नही पाया दूसरी बीमारी का इलाज लेने के दौरान जो साल्ट शरीर में लिये जाने लगे उनसे दूसरी और बीमारियां पैदा होने लगी,इसी लिये कहा जाता है कि ज्योतिष में योग,अस्पताल में रोग और मन्दिर में भोग को पहिचाने बिना तथा भेडचाल से नही चलना चाहिये। योग को पहिचाने बिना कार्य को किया जायेगा तो जरूरी है कि कार्य पूरा होगा नही और होगा भी तो उसका फ़ल जो मिलना चाहिये वह नही मिल पायेगा,उसी प्रकार से अस्पताल में टीबी का इलाज होता है और निमोनिया वाला मरीज वहां पहुंच जायेगा तो टीबी वाला डाक्टर निमोनिया की बजाय टीबी की बीमारी का इलाज करना शुरु कर देगा,उसी प्रकार से शिवजी के स्थान पर लड्डू का भोग लगाने के बाद सोचा जाये कि मानसिक स्थिति सही हो जायेगी,यह तो सम्भव नही है,लड्डू तो गणेशजी के स्थान पर चढाये जाते है,मानसिक स्थिति बजाय सुधरने की और नकारात्मक हो जायेगी।

राहु का मन्गल और चन्द्रमा पर जब गोचर हो तो जातक को जितना हो सके अपनी दैनिक क्रियाओं पर ध्यान देना जरूरी होना चाहिये,उसे अकेला बैठना और सोचते रहना बहुत ही हानिकारक होगा,उसे अपने समय से जगना चाहिये जब भी समझे कि उसका दिमाग चिन्ताओं में घिर रहा है उसे फ़ौरन किसी ऐसे काम को करना चाहिये जिसके अन्दर शारीरिक मेहनत का प्रयोग किया जाता हो,उसे रास्ता चलते समय भी ध्यान रखना चाहिये कि उसका ध्यान आसपास की वस्तुओं की तरफ़ या अपनी ही मानसिक सोच के अन्दर तो नही है,अक्सर इसी सोच के कारण कभी कभी अपने में ही मस्त रहने और बाह्य जगत की तरफ़ ध्यान नही होने से बडे बडे एक्सीडेंट हो जाते है,इसी बात के लिये और एक बात भी मानी जाती है कि जब राहु का गोचर मंगल या चन्द्र के साथ होता है तो वह बडे बडे अच्छे या बहुत ही बुरे काम भी करवा देता है,जैसे राहु के साथ मंगल का गोचर होने के समय या दशा अन्तर्दशा के समय खून के अन्दर उबाल का आना शुरु हो जाता है,जो व्यक्ति हमेशा शान्त रहने वाला होता है उसके अन्दर भी खून में अक्समात उबाल आजाता है,या तो वह गाली गलौज पर उतर आता है अथवा वह मारपीट या हत्या तक करता देखा जा सकता है। अपने खानपान नींद और दैनिक कार्यों पर अधिक ध्यान देने से गुरु मन्गल चन्द्र या शनि के अन्दर राहु का प्रभाव अपना असर नही दे पायेगा। गोमेद राहु का रत्न है और राहु की दिक्कत में केतु का और केतु की दिक्कत में राहु का उपयोग शर्तिया लाभ देने वाला होता है,लेकिन केतु को अकेला प्रयोग नही किया जाता है,जैसे लहसुनिया को प्रयोग में लाना है तो उसे पीले रंग में या पीले रंग की धातु में ही पहिनना चाहिये,गोमेद को भी पहिनना है तो पीले रंग की धातु में केतु की मानसिकता जैसे गोमेद में बने गणेशजी को पहिना जा सकता है।

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