गुरुवार, 25 नवंबर 2010

प्रकृति का बैलेंस

कहा जाता है कि जब अनेक राम पैदा हो जाते है तो रावण को भी जन्म लेना पडता है और अनेक रावण पैदा हो जाते है तो राम को भी जन्म लेना पडता है। जब खूब घास पैदा होने लगती है तो बहुत से हिरन पैदा हो जाते है और जब बहुत से हिरन पैदा हो जाते है तो शेर भी पैदा होने लगते है। इसी का नाम प्रकृति का बलैंस बनाना कहा जाता है,यह प्रकृति अपने बैलेंस को बनाकर चलती है,कोई कितनी ही मर्जी कर ले लेकिन यह अपना रास्ता नही छोडती है,जब जमीन पर भार बढ जाता है तो यह भूकंप पैदा करती है,जब जगह खाली हो जाती है तो जीवों को पैदा करती है,जो स्थान खाली होता है उसे भरती है और जो भरा है उसे खाली करती है। एक व्यक्ति जब धर्म की तरफ़ जाता है तो प्रकृति उसके अन्दर अहम को भी भरती है और जब अहम पैदा हो जाता है तो वह धार्मिकता को छोड कर आसुरी वृत्ति में जाने के लिये तैयार हो जाता है। जब वह धर्म से रहना चाहता है तो उसका ध्यान माया से जुडे लोगों में चला जाता है और जब वह माया में जाता है तो उसका ध्यान धर्म की तरफ़ चला जाता है,इस बदलने वाले प्रकृति के टेस्ट के कारण जीव अपनी अपनी करनी का फ़ल प्राप्त करता है। ग्रह नक्षत्र इस बात को अपनी अपनी प्रभाव देने वाली बात को बताते है और साधु सन्यासी लोग इसे ईश्वर की महिमा बताते है साधारण लोग इसे अपनी अपनी करनी का फ़ल बताते है,जो लोग कुछ नही जानते वे अपने को जैसे लोगों और प्रकृति के द्वारा चलाया जाता है उसी प्रकार से चलते जाते है और जो भी कार्य उनके लिये पहले से तय किया गया है उसे पूरा करते है और अपने रास्ते से निकल जाते है।

भिन्नता को देखने के लिये अपने शाकाहारी और मांसाहारी जीवों को ही नही देखना पडता है यह वृत्ति मनुष्य के अन्दर भी मिलती है,कितने लोग केवल घास पात खाकर अपने जीवन को चलाना जानते है और कितने लोग चिकन और मटन से ही अपने उदर को भरने में विश्वास करते है। कोई दूध पीकर पहलवानी और शरीर के बल को प्रदर्शित करता है तो कोई शराब पीकर दस मिनट में ही अपने आतंक को प्रदर्शित करने से नही चूकता है। कोई परायी बहिन बेटी को अपनी बहिन बेटी समझता है तो कोई सभी को कामुकता की नजर से ही देखता है,अगर सभी की समान द्रिष्टि हो जाती तो कोई न्याय करने की जरूरत नही पडती,सभी अपने अपने रास्ते से चले जा रहे होते और कोई युद्ध नही होता कोई मारकाट नही होती और कोई एक दूसरे से जलन नही रखता,लेकिन इस बात में भी प्रकृति को दिक्कत आने लगती,जब एक दूसरे को जलन नही होती तो वह आगे ही आगे बढते जाते,एक प्रकार की मानसिकता होती तो वे आसमान में सीढियां भी लगा चुके होते। या तो एक ही मानसिकता से सभी बढ चढकर खुश हो गये होते या एक ही मानसिकता से समाप्त भी हो गये होते। आखिर में इस प्रकृति को इतना क्यों करना पडता है,क्यों वह जीव को पैदा करती है और उसे पालती है उसकी रक्षा करती है और जरा सी देर में कोई न कोई कारण पैदा करने के बाद उसे समाप्त कर देती है,या तो वह पैदा ही नही करे,और पैदा करे तो मारे नही,परेशान नही करे,लेकिन इतनी बात को समझने के लिये प्रकृति के पास समय कहां है उसे तो कुछ करना है,जो करना है हमें भी पता नही है,जब हम जमीन के नीचे से कोयला और पेट्रोल आदि निकालते है तो वैज्ञानिक कहते है यह सब जीवांशो के द्वारा ही सम्भव है,अन्यथा जमीन के नीचे कोयला कैसे बन गया,जहां जहां कोयले की खाने है वहां वहां पूर्वकाल में बडी बडी बस्तियां रही होंगी,बडे बडे जंगल रहे होंगे,वे किसी न किसी कारण से समाप्त हो गये और उनके अवषेश कोयला या पेट्रोल के रूप में नीचे रह गये,वे ही मनुष्य निकाल निकाल कर जलाने और शक्ति के रूप में प्रयोग करने के लिये अपना रहा है। समुद्रों के नीचे भी पेट्रोल और कोयले की खाने है,मीलों गहरे पानी के नीचे भी पेट्रोल की खोज की गयी है और मनुष्य वहां से भी पेट्रोल और खनिज निकालने के लिये प्रयास रत है।

यह जमीन की मिट्टी जो देखने में पत्थर लगती है बालू लगती है चिकनी मिट्टी लगती है,भुरभुरी लगती है दोमट लगती है लाल पीली काली हरी सभी तरह की मिट्टी दिखाई देती है यह कोई साधारण वस्तु नही है,यह अटल मिट्टी है इसके अन्दर से जो चाहो प्राप्त कर सकते हो,लेकिन प्राप्त करने की कला होनी चाहिये,जैसे इस मिट्टी से मीठा रस पीना है तो पहले इसके अन्दर गन्ना बोया जायेगा,और जब इस मिट्टी से चरपरा कुछ खाना है तो मिर्ची बोयी जायेगी और एक प्रकार की मिट्टी से ही मीठा और चरपरा दोनो प्रकार का स्वाद पैदा हो जायेगा,इसे अगर वैसे ही चाखो तो कैसी भी नही लगती है। इसी मिट्टी में गंधक है इसी में पारा है इसी में अगरस है इसी में मगरस है और जब इन्हे तपा दिया गया तो इसी मिट्टी में सोना भी बना है,मगरस हटा दिया तो लोहा ही रह गया,एक सौ उनसठ तत्व मिट्टी के सोना बना देते है तो एक सौ अट्ठावन तत्व लोहा ही रहने देते है। इस मिट्टी को गीला कर दो और सही तापमान में रखो पता नही कहां से आकर इसके अन्दर कोई न कोई जीव या वनस्पति अपने आप पैदा होने लगेगी,कोई इस मिट्टी को नही जाने लेकिन धरती के अन्दर रहने वाले जीव तो इसे जानते ही है। जो इस धरती के अन्दर जीव रहते है उन्हे ऊपर का सभी कुछ पता होता है,अगर समझना है तो कभी चीटी को देखो,जैसे ही पानी बरसने वाला होता है वह समझ जाती है कि उसके बिल में पानी आयेगा और वह अपने अंडे बच्चे लेकर सुरक्षित स्थान की ओर भागलेती है और वह जाती भी वहीं है जहां पानी किसी तरह से नही पहुंचेगा,आदमी के पास तो बैरोमीटर है लेकिन चीटी के पास कौन सा बैरोमीटर है ? आदमी के पास बुद्धि है लेकिन सेंस नही है,वह अपनी बुद्धि से बना तो बहुत कुछ सकता है लेकिन उसे यह सेंस नही है कि उस बने हुये का आगे प्रयोगात्मक पहलू सकारात्मक होगा या नकारात्मक.

मनुष्य की पसंद तो खुशबू होती है लेकिन वह उस खुशबू को बदलकर बदबू में परिवर्तित कर देता है,वह भोजन तो स्वादिष्ट खाता है,लेकिन पाखाना बदबू वाला ही करता है,आदमी का पाखाना किसी काम का नही है जबकिएक अदनी से जीव गाय का पाखाना कम से कम लीपने पोतने और जलाने के लिये छैने तो बनाने के काम आता है,मनुष्य का शरीर भी किसी काम का नही है,वह मन्दिरों में जाता है तो अपने को पवित्र बताता है,मस्जिद में जाता है तो अपने को पवित्र बताता है,और जब उसकी अन्तगति होती है तो उसे लोग छूने से डरते है,और कोई भूल से छू भी लेता है तो उसे नहाना पडता है और कई और भी क्रिया कर्म करने पडते है,किस काम का है यह मनुष्य ?

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