गुरुवार, 23 सितंबर 2010

अहम किसके लिये ?

वाल्मीकि का आतंक जब चरमसीमा पर पहुँच गया तो प्रकृति ने न्याय के लिये सप्तऋषियों को भेजा। लूटने की प्रक्रिया में माहिर वाल्मीकि ने उन सप्त ऋषियों को भी लूटने की प्रक्रिया अपनायी। सप्त ऋषियों ने उनसे कहा कि आप हमें लूट लो कोई बात नहीं,आप हमें मारडालो कोई बात नहीं,आप हमारे शरीर को घायल कर दो कोई बात नहीं,लेकिन हमारे एक प्रश्न का उत्तर दे दो,वाल्मीकि के सामने ऐसा उदाहरण कभी जीवन में नही आया था,उन्होने जिसे भी लूटा था वह या तो कातरता से चिल्लाता था,या अपनी जान और माल को बचाने के लिये उनसे बच कर भागने की कोशिश करता था,लेकिन इस प्रकार की बात कोई नही करता था कि लूट भी लो मार भी डालो घायल भी कर दो,लेकिन प्रश्न का जबाब देदो। उन्होने अपने को संभाला और उत्सुकता वश प्रश्न करने के लिये कहा। सप्तऋषियों ने प्रश्न किया कि- " यह लूटने का और हत्या करने का उद्देश्य क्या है ? यह सब कार्य किसके लिये कर रहे हो,इस किये जाने वाले कार्य का भुगतान जब प्रकृति देगी तो उसकी सजा कौन कौन भुगतेगा?",वाल्मीकि जी ने बडी ही आसानी से जबाब दिया कि वे अपने परिवार के पालन पोषण के लिये यह कार्य कर रहे है,और उनके द्वारा किये जाने वाले कार्य का उद्देश्य केवल अपना और अपने परिवारी जनों के पालन पोषण का है,और जब प्रकृति सजा देगी तो जो लोग उनके साथ परिवार में है सभी को सजा भुगतने का अधिकार होगा",इतने जबाब को सुनकर उन सप्तऋषियों ने प्रश्न किया कि पहले अपने परिवारी जनों से पूँछो कि वे तुम्हारे द्वारा किये गये पापों की सजा को भुगतने के लिये राजी हैं,अगर वे सभी राजी है तो हम लुटने के लिये,मरने के लिये और घायल होने के लिये तैयार हैं,वाल्मीकि जी ने बडी मजाकिया मुद्रा में जबाब दिया कि वाह जब तक मै सबसे पूँछने जाऊँ,तब तक तुम सभी दूर भाग जाओ,सप्तऋषियों ने उनसे सभी को बन्धन देने और जाकर पूँछने के लिये कहा। वाल्मीकि जी ने सभी सप्तऋषियों को पेडों से बांध कर जिससे वे भाग न जायें,अपने परिवारी जनों से पूंछने के लिये गये। दरवाजे पर उनकी माताजी पिताजी के साथ विराजमान थी,उन्होने अपने पुत्र को आते ही भावनापूर्ण शब्दों में वातसल्य भाव से कहा,कि उनका बेटा कार्य करने के बाद घर आया है उसके भोजन पानी की पूर्ति की जाये,वाल्मीकि जी अपने कार्य को अधूरा छोड कर आये थे,उन्होने आते ही अपनी माताजी और पिताजी से पूँछा कि वह जो कार्य कर रहे है उस कार्य की पाप पुण्य की सजा भोगने के लिये क्या वे भी उनका साथ देंगे,माता पिता ने साफ़ शब्दों में जबाब दिया कि उन्होने अपने माता पिता के कर्तव्य को पूरा करने के बाद ही अपने बुढापे में पुत्र के सहायता की आशा की है,पुत्र क्या करता है उन्हे कोई पता नही है,पुत्र पाप से कमा कर लाता है या पुण्य से कमाकर लाता है उन्हे उससे कोई लेना देना नही है,वह केवल यह जानते है कि पुत्र अपने कर्तव्य का पालन कर रहा है,और जो भी कार्य पुत्र करेगा,उसके पाप पुण्य का अधिकारी खुद पुत्र ही होगा,माता पिता उसके किसी भी पाप पुण्य के अधिकारी नही होते है। वाल्मीकि जी के मसिष्क में विचार कौंधा कि जब माता पिता ही उनके द्वारा किये गये पापों के अधिकारी नही है तो वह अपने माता पिता के पालनपोषण के लिये पाप क्यों करते है,कोई बात नही उनकी पत्नी और भाई बहिन बच्चे ही उनके किये गये पापों में भागीदार होंगे उन्होने से बारी बारी से सभी से प्रश्न किया,सभी ने यही जबाब दिया कि वे उनके लिये कार्य कर रहे है,और वह उनके लिये कार्य कर रहे है,जो पाप से कार्य कर रहा है वह पाप के लिये और जो पुण्य से कार्य कर रहा है वह पुण्य का अपने अपने कर्मों से खुद ही पाप और पुण्य का अधिकारी है,कोई भी किसी के पाप और पुण्य को करने का अधिकारी नही बन सकता है। वाल्मीकि जी को ज्ञान हो गया,वे सोचने लगे कि जब उनके किये गये कार्यों का कोई पाप का अधिकारी नही बनना चाहता है तो वह क्यों सबके लिये पाप किये जा रहे हैं,उन्हे उन सप्तऋषियों का ख्याल आया,वे वापस उसी वन में उनके पास भागे और उन्हे बन्धन मुक्त करने के बाद उनके पैरों पर गिरकर उनके द्वारा किये गये पाप की माफ़ी मांगी,और उनसे पूर्व समय में किये गये पापॊ की मुक्ति के लिये उपाय पूँछा। सप्तऋषियों ने जबाब दिया कि वे नाम सहारा लें और नाम को स्मरण करते रहें,उन्हे "राम" का नाम स्मरण करने के लिये जपने के लिये कहा गया,लेकिन जो व्यक्ति जीवन भर केवल मारने का ही काम करता रहा हो वह भला राम को कैसे जप सकता था,वह इस नाम को कैसे स्मरण कर सकता था। राम को जाप करने की बजाय वे "मरा मरा" जपने लगे,लगातार मरा मरा जपने के बाद उनकी जुबान से राम राम शब्द की उत्पत्ति होने लगी,और वही वाल्मीकि जी महान वाल्मीकि ऋषि की श्रेणी में आये,माता सीता को उन्होने अपने सानिध्य में रखा और वाल्मीकि कृत रामायण का निर्माण करने के बाद अपनी रामायण को राम पुत्र लव और कुश के द्वारा राम दरवार में सुनाया।

मानवीय न्याय बनाम प्रकृति का न्याय

जब किसी अपराधी को अपराध की सजा दी जाती है तो लोग प्रशंसा करते है लेकिन जब किसी निरपराधी को सजा मिल जाती है तो लोग उस न्याय प्रक्रिया की भर्त्सना करने लगते है। जिसने भी न्याय को सही नही किया होता है और न्याय करने में जितने लोग जिम्मेदार होते है वे चाहे किसी धर्म के हों,किसी भी जाति के हों किसी भी समुदाय या देश में रहने वाले हों प्रकृति उनके साथ जो न्याय करती है वह जनसमुदाय को समझने वाली बात होती है,और उस न्याय को गलत करने के उपरान्त जो दंड उन्हे भोगने को मिलता है वह मानवीय जेलों में रहने वाले कैदी से हजार लाख गुना कष्टदायक होता है। दबी जुबान से आसपास रहने वाले और जानकार कहने भी लगते है,खुद को महसूस भी होता है लेकिन पद पर रहने के बाद जो अहम पैदा हो गया था और एक मनुष्य के वेश में खुद को भगवान मान कर शैतानी फ़ैसला कर देना या किसी भी तरह के जाली और अन्य प्रकार के तथ्यों को लगाकर वकालत करने के बाद अपराधी को बचा लेना,यह सब उस प्रकृति की आंखों से छिपा नही होता है,जिस दिन उसकी क्रिया चालू होती है बडे बडे हाथी और दिग्गज का बल रखने वाले अपने को शूरमा समझने वाले कैसे प्रकृति की मार से जूझते है कुछ इसी प्रकार के तथ्य आपके सामने प्रस्तुत हैं।

नाम राज सिंह (बदला हुआ नाम) राजस्थान के मुख्य शहर के निवासी है,उनके दो पुत्र और दो पुत्रियां है,खुद रक्षा सेवा से नौकरी करने के बाद वकालत करने लगे पहले भी वे सेना में वकालत करते रहे थे इसलिये उनके रिटायर होने के बाद वकालत करने में कोई दिक्कत नही आयी,आराम से पहले लोअर कोर्ट और बाद में हाई कोर्ट के वकील बन गये। अपना खुद का निवास स्थान बना लिया और अपना आफ़िस भी सभ्रांत जगह पर बना लिया,बात बनाने और धन को गौढ स्थान देने के कारण जितना जिसने धन दिया उसी के अनुसार उसके केश की पैरवी कर दी उनका यह काम लगातार बढने लगा। जब शैतानों को न्याय मिलने लगे तो शैतानी ताकतें गलत कमाये हुये धन को भी मुहैया करवाने लगीं,खूब धन आने लगा,जिसके पास रिटायर होने के बाद साइकिल भी नही थी वह जब महंगी गाडियां और बंगले संभालने लगे,जिनकी पत्नी ने कभी दाल रोटी से अधिक भोजन की कामना भी नही की थी अचानक उन्हे फ़ाइव स्टार होटलों में खाना खाते हुये देखा जाये तो अपने आप लोगों को अन्दाज होने लगता है कि किसी न किसी प्रकार की गलत कमाई के कारण ही ऐसा संभव हो सकता है। उनके द्वारा जो केश लडे जाते है उनके अन्दर अक्सर जमीन सम्बन्धी प्रकरण ही होते है,चोर लुटेरे डकैत जालसाज उनकी शरण में आते है और अपने केश उन्हे सौंप कर अपने को निर्दोष साबित करने के लिये उन्हे मुंह मांगा धन देते है,उन्होने भी अपनी वकालत के साथ एक माफ़िया गिरोह जैसा बना लिया है,किसी भी सामने वाले वकील को पहले धन से खरीदना,या वह धन से वश में नही आता है तो माफ़िया वाली धमकियों से डराना धमकाना कानूनी पत्रावलियों को इधर उधर करवाने के लिये कानूनी कार्य करने वालों से मिली भगत रखना,अधिकतर मामलों में धन की चाहत रखने वाले ही प्रेक्टिस करने के लिये कोर्ट में जाते है पहले उन्होने अपने जीविकोपार्जन के लिये वकालत की डिग्री ले ली और बाद में किसी वकील के सानिध्य में प्रेक्टिस शुरु कर दी और जो भी मेहनताना उन्हे मिलने लगा उससे वे अपने घर परिवार का खर्चा चलाने लगे। जब किसी केश में उनके सामने इस प्रकार के वकील आजाते है तो उन्हे केश के बदले में मुंह मांगी हुयी कीमत मिलती है एक तरफ़ जिसका केश लडा जा रहा है उसकी फ़ीस तो मिलनी ही है और दूसरी तरफ़ केश के प्रति पैरवी में लापरवाही के चलते सामने वाले को केश जीतने के लिये तैयार भी करना होता है,चूंकि उनका कार्य धन को कमाना है और इसी लिये वे कानून की पैरवी करने के लिये कोर्ट में आते है,एक ही जगह पर काम करना होता है इसलिये किसी प्रकार से सामने वाले वकील से अदावत भी नही की जा सकती है,मतलब एक ही माना जाता है कि धन ही अदालत के अन्दर गौढ बन गया है,जिसके पास धन है वह अदालत की जीत ले सकता है,चाहे वह कितना ही योग्य क्यों न हो,कितनी ही कानूनी परिभाषा उसे क्यों न आती हो,कितनी ही भागदौड वह करना क्यों न जानता हो जब तक वह धन का अधिक से अधिक प्रयोग अदालत में नही करेगा,वर्तमान की न्याय प्रक्रिया उसके लिये उचित न्याय नही देने वाली है। राजसिंह ने अपने सुख साधन के सभी इन्तजाम अपनी वकालत की कमाई से लगभग पूरे कर लिये,जब धन का मोह परिवार में बढ जाता है तो आज की भौतिक दुनिया की चमक दमक घर और परिवार वालों को और भी बढ जाती है और जब घर के अन्दर कोई परिवार का व्यक्ति अनाप सनाप धन को लाने लगे तो घर के सभी सदस्य उसके धन को प्रयोग करने के लिये उस धन को हासिल करने के लिये अपनी अपनी जुगत लगाना शुरु कर देते है,पिता अगर धन को घर में ला रहा है तो उसकी रखरखाव और सुरक्षा माता के पास आजाती है,जब घर के सदस्यों को धन की जरूरत पडती है तो बच्चे माता से, देवर भाभी से जेठ बहू से सास ससुर पुत्रवधू से सभी धन को किसी न किसी काम के लिये प्रयोग में लाना शुरु कर देते है,और जब धन खूब आ रहा हो उसकी गिनती किसी के पास नही हो तो अनाप सनाप खर्च करना भी जरूरी हो जाता है,मद की बढोत्तरी भी हो जाती है,जहां कोई बात नही होती है वहां बात बनाकर शत्रुता निकालने के लिये और आसपास के रहने वाले लोगों को नीचा दिखाने के लिये तरह तरह के कार्य किये जाने लगते है। राजसिंह के साथ भी यही होना था,उनके चारों बच्चे बडे से बडे स्कूल में पढने के लिये जाने लगे बडे हुये तो सभी के पास अपनी अपनी गाडियां हो गयीं,जो भी कार्य करना होता था धन की कमी थी नही,माताजी से केवल कहना भर होता था,कि धन हाजिर होजाता। राज सिंह का ख्याब बना कि किसी बहुत बडे पद पर उनका लडका जाये,लेकिन लडके ने जब डिग्री भी धन के बलबूते पर ली हो तो परीक्षा में पास होने के लिये भी नम्बर चाहिये,धन अधिकतर सभी जगह काम नही आता है कहीं कहीं पर ईमानदारी से भी काम होता है,जैसे रक्षा सेवा की परीक्षा में देश के गरिमा वाले पदों के लिये भी माना जा सकता है,लेकिन कुछ समय बाद इनके अन्दर भी भ्रष्टाचार की दीमक फ़ैलती जा रही है। जब बडे पद के लिये नही जा पाया तो उसे भी अपने साथ वकालत में ही लगा लिया,छोटा वाला लडका पिता से विपरीत चलने लगा,उससे जो कहा जाता उस काम को हरगिज नही करता था,केवल माता से सम्बन्ध रखता,किसी बहिन भाई की बात भी नही मानता था,कितने ही नशे उसने अपनी आदतों मे मिला लिये,वह अपने शरीर को तो गलाने ही लगा,जहाँ भी जाता वहीं पिता के नाम का फ़ायदा लेकर कुछ भी करने से नही चूकता। एक दिन किसी बात पर रास्ता चलते अन्जान व्यक्ति से भिडंत हो गयी,उस व्यक्ति ने उसे पत्थर से ठोक दिया,सिर में चोट लगी,पत्थर मारने वाला तो भाग गया,उसे अस्पताल में भेजा गया,बडे से बडे अस्पताल में उसके सिर की चोट का इलाज करवाने की कोशिश की गयी,मुंबई के जसलोक अस्पताल से लेकर जो भी जहां भी बडे अस्पताल थे,सभी में इलाज के लिये कोशिश की गयी लेकिन उसका दिमागी संतुलन नही बन पाया,करोडों रुपये खर्च होने के बाद वह लडका घर पर एक मुर्दा शरीर की तरफ़ पडा हुआ है,उसका मलमूत्र साफ़ करने के लिये नौकर का बन्दोबस्त किया जाता है लेकिन कुछ दिन काम करने के बाद नौकर भी अपना रास्ता ले लेता है,और वकील साहब की पत्नी को जवान पुत्र की देखरेख करनी पड रही है,उनकी हालत भी विक्षिप्त जैसी हो गयी है। उधर बडी लडकी की शादी एक सम्पन्न परिवार में की गयी,धन का बल वकील साहब ने खूब दिखाया,जितना खर्च करना था उसका कई गुना अपने नाम को कमाने के लिये किया,लडके वालों को भी अहसास हो गया कि काफ़ी धन है और जैसे भी धन को खींचा जा सके खींचा जाये। उन्होने दो चार महिने तो लडकी को बहुत प्यार से रखा और लडके के कहने से लडकी पिता से अनाप सनाप धन लाने लगी,लेकिन एक सीमा से बाहर जाते ही वकील साहब ने भी धन से देने से इन्कार कर दिया,एक पुत्री के साथ बडी लडकी आकर घर बैठ गयी,वकील साहब कोर्ट केश उस लडके वालों से नही कर पा रहे है,कारण उस लडके का बाप भी जज है। बडे लडके की शादी कर दी गयी,बहू घर में आयी और घर के रवैया को देखकर उसने आते ही घर में नौटंकी चालू कर दी और अपने पति को लेकर दूर जाकर एक मकान बनाकर रहने लगी,जो भी उस लडके का हिस्सा था वह भी साथ ले गयी,घर में वकील साहब को चाय पिलाने के लिये नौकरानी है तो मिल जाती है अन्यथा बाहर जाकर ही चाय पी जा सकती है। घर की टेंसन के कारण जो केश सामने थे,उनके अन्दर भी ढील शुरु हो गयी,जो दिमाग काम करता था वह पंगु सा हो गया,और जो क्लाइंट आते थे वे दूसरे वकीलों को तलाश करने लगे,इधर हाथ पैर भी कमजोर होने लगे घर से धन की सीमा धीरे धीरे समाप्त होने लगी,जवान लडके की दवाइयां,पहले से पाले गये अनाप सनाप खर्चे,आर्डर देकर काम करवाने की आदत सभी बेकार साबित होते गये। अधिक चिन्ता के कारण पलंग के मेहमान बन गये वकील साहब। आज उनकी पैतीस साल की लडकी किसी आफ़िस में काम करने के बाद कमा कर लाती है,जब वकील साहब की दवाइयां और लडके की दवाइयां आती है,वकील साहब की पत्नी के हाथ पैर के जोड काम नही करते है,वकील साहब की पीठ पलंग पर लगातार पडे रहने के कारण सडने लगी है,पास में बैठने से बदबू आती है,आगे के जीवन के लिये सभी अनुमान लगा सकते है.।

बुधवार, 1 सितंबर 2010

आप पुलिस में हैं ?

आपने मानव सेवा करने का व्रत लिया है
आपने पुलिस की वर्दी धारण की है,आपने मानव सेवा का व्रत लिया है,आपको मानव कल्याण के कार्य करने के लिये चुना गया है,इस चुनाव में भले ही आपने अपनी कोई भी शक्ति तन धन और व्यक्तिगत सुखों के सहित कुछ भी खर्च किया हो,लेकिन आपका उद्देश्य मानव सेवा व्रत को धारण करने के बाद असहाय आपत्ति से घिरे लोगों को दंड दिलवाने का ही है,अगर आप अपनी शक्ति को बेकार की बातों में और तनिक शरीर सुख के लिये धन को कमाने के लिये प्रयोग में लेंगे तो आपको हो सकता है मानव निर्मित कानून दंड नही दे,लेकिन प्रकृति का कानून आपको जरूर दंडित करेगा,और वह दंड आपको ही नही आपकी सात पीढी तक देखा जायेगा,चाहे वह बच्चों की अपंगता के रूप में हो चाहे वह उनकी चाल चलन वाली गति से हो या परिवार पर बेकार के आसमयिक कष्टों के लिये हो। आपने मंगल का व्रत धारण किया है,मंगल का कार्य अपराधियों को दंड देना है,न कि सज्जन लोगों को अपराधी बनाने का है,अगर भूल से भी कोई सज्जन आपकी कार्य शैली से अपराधी बन गया तो आप की आत्मा आपको कभी क्षमा नही कर पायेगी,साथ ही उस अपराधी बने सज्जन व्यक्ति की आगे की पीछे की पीढी की हाय आपको कहीं का नही छोडेगी,थोडी सी देर की आपकी अहम वाली स्थति पता नही कितनी शताब्दियों तक आपकी वंश बेल को प्रताणित करेगी,इसका अनुमान आप इन उदाहरणों से प्राप्त कर सकते है,बहुत पहले का तो इतिहास नही है लेकिन जो हाल में लोगों के व्यक्तिगत जीवन में झांक कर देखा तो जो सामने आया है वही शत प्रतिशत लिखा गया है।

नाम सूबे सिंह (बदला हुआ नाम) राजस्थान पुलिस

अलवर जिले का यादव परिवार का युवक उसके अन्दर एक ही जज्बा था देश सेवा का कई बार सेना के लिये कोशिश की लेकिन सेना की बजाय पुलिस के सिपाही पद के लिये भर्ती हो गया। शादी हुयी और परिवार सहित जयपुर में आकर बस गया,जयपुर के कई थानों में नौकरी की,धन का मोह और बडे मकान का मोह पैदा हो गया। जितना हो सकता था लोगों से डराकर धमका कर धन वसूल किया। बडा तीन मंजिल का घर बनाया,तीन बेटियों और एक बेटे की परवरिस की,समाज में रुतबा दिखाने के लिये और अपने अहम को बरकरार रखने के लिये शराब कबाब सभी का चाल चलन घर के अन्दर शुरु हो गया,भाई परिवार सभी डरने लगे,कोई भी पडौसी भी किसी गलत बात को कहने पर उसका सही रूप नही दे पाया,पत्नी ने खूब समझाने की कोशिश की मगर तानाशाही दिमाग में घर करती गयी। किसी का किरायेदार मकान खाली नही कर रहा है,पैसे लिये और किरायेदार को मकान के बाहर कर दिया,किसी की मारपीट हुयी दोनो तरफ़ से पैसे लेकर केश रफ़ा दफ़ा कर दिया,किसी की किसी से लडाई झगडा हुआ जिसने अधिक पैसे दिये उसके विपक्षी के विरुद्ध केश बना दिया और जेल में बंद करवा दिया,यहाँ तक कि लावारिस लाश को ठिकाने लगाने के लिये लकडियों की जगह पर टायरों से जलाने का काम लिया। मकान एक मंजिल दो मंजिल और तीन मंजिल तक चढा दिया,किरायेदार रख लिये,चारों तरफ़ से धन ही धन की बौछार होने लगी,दो बेटियों की शादियां कर दी लडके का एडमिशन कालेज में करवा दिया। जिसे देखो वही कहने लगा सूबे सिंह ने खूब धन कमाया है,जो रास्ते में मिलता वही डर वाले आदर से सिर झुकाने लगा। सीना तान कर आदमी को आदमी समझना बंद कर दिया। समय का पहिया घूमा,जो लडका कालेज में भर्ती करवाया था,उसकी आंख किसी लडकी से लड गयी,पता लगने पर सीधे उस लडकी के बाप के पास पहुंचे उसके परिवार और मुहल्ले वालों के सामने जलील कर दिया,लडका डर से कुछ नही बोल पाया,उसकी जबरदस्ती शादी कर दी काफ़ी दहेज आया कार सामान और न जाने क्या क्या। लडके ने एक दिन घर को छोड दिया और कई महिनों तक गायब रहा,एक दिन माँ की ममता उसे खींच लायी,उसने अपनी माँ से रोते हुये कहा कि पिताजी ने जो भी जमा किया है वह हमारे लिये किया है,हमारी बहनो के लिये किया है,इस धन से हमारी जिन्दगी नही चलनी है हमारी जिन्दगी प्यार से चलनी है,माँ भी असमर्थ थी,कुछ नही कर सकती थी। एक दिन बहू के प्रति बात चली,सूबे सिंह ने अपने पुलिसिया अंदाज में लडके पर हाथ उठाया और कहा कि रहना इसी बहू के साथ है,उस छिनाल का नाम इस घर में लिया तो उसके घर वालों को उसके सहित किसी न किसी केश में समाप्त कर दूंगा। वे लोग समाज में मुंह दिखाने लायक नही रहेंगे। लडका कुछ नही बोला और एक दिन उसने अपने ऊपर पेट्रोल छिडक कर आग लगा ली,अस्पताल में भर्ती किया गया,दिखाया गया कि स्टोव फ़ट गया इसलिये जल गया,लडका भी कुछ नही बोला और न ही कोई बयान दिया,एक दिन इलाज के दौरान ही दम तोड दिया,सूबे सिंह का वंश खत्म हो गया,अकेला रह गया एक लडकी घर पर शादी के लिये रह गयी,बहू जो एक साल भी नही हुआ था शादी को विधवा हो गयी। मुहल्ले जान पहिचान और समाज परिवार सभी जगह थू थू होने लगी। बहू के घर वाले आये अपने दिये गये सामान के सहित बहू को भी ले गये और हमेशा के लिये रिस्ता खत्म कर गये। घर में गमगीन माहौल रहने लगा,सूबे सिंह और उनकी पत्नी अलग कमरे में पडे रहकर अपने किये गये पापों की गिनती करने लगे,लडकी जो स्कूल जाती थी वह भी घर के माहौल से दुखी रहने लगी। और दूसरी साल में वह लडकी भी एक लडके के साथ भाग गयी। जिस घर को लोगों की हाय और चीखों से बनाया गया था वह शमशान की तरह से हो गया,प्रकृति ने जो सजा दी वह मानव निर्मित कानून से हजारों गुना अधिक थी,कोई नाम लेने वाला और कोई समाज में इज्जत देने वाला नही रहा,जो लोग डर से नमस्कार करते थे,उनके सामने सिर झुकाकर जाना पड रहा है,सूबे सिंह आज तिल तिल करके मर रहा है।

नाम राज सिंह (बदला हुआ नाम) राजस्थान पुलिस

सीकर जिला का राजपूत युवक,बडा ही होनहार आर ए एस की परीक्षा की तैयारी कर रहा था,अचानक पुलिस की भर्ती हुयी और थानेदार की पोस्ट पर जा बैठा। कई थानों में अपनी सर्विस दी और सभी थानों में पुलिस वालों के साथ रहकर शराब पीने की आदत और अन्य बुरी आदतें पाल लीं। धन की कोई कमी नही थी,कभी तस्कर से कभी गुंडों से कभी किसी शरीफ़ को मर्डर जैसे केशों में फ़ंसाकर लाखों रुपये कमाने का चस्का लग गया,किसी बेसहारा औरत को देखा तो गुपचुप रूप से उसके शरीर का भोग किया और छोड दिया,घर पर पत्नी और दो बच्चे,उनके लिये सुख साधन के सभी सामान गाडी मकान शाही गहने और जो एक समृद्ध परिवार में सामान पाया जाता है सभी सामान लोगों की कराह के बदले लिया। थाने में राज सिंह का नाम बहुत ऊंचा था,किसी को भी नही किये गये अपराध के लिये भी हां करवालेना राज सिंह के बायें हाथ का काम था,लकडी में फ़िट लपलपे पट्टे की मार जब राज सिंह की पडती थी तो कोई भी शरीफ़ अपराध करने की झूठी हां कर लेता था,थाने के बंद कमरे में पीटने के लिये राज सिंह शराब पीकर ही इस काम को करता था। समय का पहिया घूमा,बडे लडके के पैर में कोई रोग पैदा हुआ,बडे बडे से अस्पताल में दिखाया कोई डाक्टर कोई लेबोट्री यह बताने को तैयार नही हुयी कि रोग क्या है,पैर में अचानक फ़फ़ोला पडता,फ़ूटता और बच्चा इतना तडपता कि उसे बेहोशी का इंजेक्सन देकर चुप करवाना पडता। पत्नी को सभी साधन मिल गये थे,लेकिन राज सिंह का घर में रहना भी कम होता था,सभी साधन हों लेकिन घर पर मर्द नही हो तथा औरत को पता हो कि उसका मर्द कई स्त्रियों के साथ अपनी रातें गुजारता है तो औरत के अन्दर भी भावनायें दूसरे लोगों के साथ अपने कामसुख को प्राप्त करने के लिये जरूर ही जग जायेंगी। घर में तामसी खाना बनना,मुर्गा कबाब रोजाना की सब्जी भाजी जैसी होना,तरह तरह के तामसी भोजन रोजाना बनने और अधिकतर महंगे होटलों में खाना खाने से शरीर की गर्मी तो बढेगी ही,उस गर्मी को शांत करने के लिये कोई न कोई रास्ता तो अपनाना पडेगा,औरत के लिये सभी सुख एक तरफ़ और मर्द का सुख एक तरफ़ माना जाता है वही हाल राज सिंह की पत्नी के साथ हुआ,एक दिन अचानक अपने दोनों लडकों को छोड कर गायब हो गयी,खुद पुलिस में थानेदार थे लेकिन पता नही कर पाये कि गयी तो कहां गयी,औरत गयी सो गयी,साथ में लाखों रुपये का माल भी ले गयी और दो बच्चे जिनमें एक तो असाध्य रोग से पीडित था,दूसरा मंद बुद्धि था को राजसिंह के ऊपर छोड गयी,उनके परिवार वाले उन बच्चों को किसी तरह से भी संभालने के लिये तैयार नही हुये,राज सिंह नौकरी तो कर रहा है,लेकिन बडे बच्चे के रोग की दवा और छोटे बच्चे की परवरिस के लिये बहुत परेशान है,जब वह नौकरी से घर आता है तो घर पर बडा लडका तो चिल्ला रहा होता है और छोटा अपनी ही लेट्रिन से लिसापुता पडा होता है,बडा उन्नीस साल का है और छोटा सत्रह साल का,राज सिंह ने अपनी शक्ति को बिना सोचे समझे थाने के बंद कमरे में प्रयुक्त किया लेकिन प्रकृति ने उनके बडे लडके के साथ खुले रूप में प्रयोग किया,राज सिंह ने शरीफ़ लोगों को अपराधी घोषित करने के लिये आक्षेप समाज के सामने कानून के लगाये लेकिन उनके छोटे बच्चे के ऊपर प्रकृति ने उसी के मल को पोत कर लगाना शुरु कर दिया,राज सिंह ने बेसहारा औरतों को अपना हवस का शिकार बनाया लेकिन राज सिंह की पत्नी ने सहारा होते हुये भी सात पुस्तों के लिये दाग लगा दिया कि राज सिंह की पत्नी भाग गयी।

नाम धन्नाराम (बदला हुआ) मध्य प्रदेश पुलिस

भदाखुर राजपूतों के परिवारों का बडा गांव है जो जिला भिण्ड में है। इस गांव के दो भाई दोनो को स्वतंत्रता के बाद के मंत्री ने सीधे पुलिस में ऊंची पोस्ट पर भर्ती कर दिया,उस समय पुलिस की भर्ती आज जैसी नही थी,कोई भी पढा लिखा व्यक्ति सीधा ही पुलिस में भर्ती किया जा सकता था। धन्ना राम ने पुलिस की नौकरी तीस साल तक की और सन उन्नीस सौ पचासी में रिटायर होकर अपने गांव आ गये। गांव में एक उनकी एक लडकी और एक लडका पत्नी के पास रहते थे। लडका मंद बुद्धि था और लडकी भी मंद बुद्धि,दोनो की शादी पैसा की दम पर कर दी गयी,लडकी तो ग्वालियर में है और पति से दूर रहती है,उसका पति उसे भोजन का बन्दोबस्त कर जाता है कोई सन्तान नही है,जब उसे भोजन और रहने की परेशानी होती है अपने गांव भदाखुर आजाती है। लडके की शादी भी मैनपुरी जिला उत्तर प्रदेश से कर दी गयी,यह शादी भी सम्पत्ति के ऊपर ही की गयी थी। उस मंद बुद्धि लडके के दो पुत्र हुये वह भी मंद बुद्धि। लडके को काम करने के लिये खेतों में जाना पडता था,गांव के लोगों के साथ शराब पीना भी सीख गया था एक तो मंद बुद्धि और ऊपर से नशे की आदत सोचा जा सकता है कि गांव के अन्दर उसका कैसा हाल होगा। धन्नाराम ने कितने ही असहाय और गरीब लोगों को चम्बल के किनारे मौत के घाट उतारा था,वह भी डकैतों की मुठभेड बताकर,कितने लोगों का माल डकैती का माल बताकर उनके घरों से अपने पुलिसिया रौब से लूटा था और मालखाने में जमा करवाने की बजाय किसी मालवाले की दुकान पर बेच कर उसके टके बनाकर अपने पस रखे थे,कितने मरे हुये डकैतों के पास मिले माल को थोडा बहुत दिखाकर उसे हजम किया था,कितने ही शरीफ़ लोगों को तरह तरह के आक्षेप लगाकर डकैत घोषित किया था,कितने ही पढे लिखे और कुछ कर दिखाने वाले युवकों को इतना परेशान किया कि वे अपने को समाप्त करने के लिये चम्बल की शरण में चले गये,और किसी न किसी दिन पुलिस की मुठभेड में मारे गये आदि कार्य धन्नाराम ने किये थे। घर आकर और लडके को साथ लेकर खेती किसानी के काम के लिये नये नये कार्य करने लगे,कभी ट्यूवबैल का बनवाना कभी ट्रेक्टर को लाना और उससे खेती वाले काम करना,लडके को मारपीट कर सिखाने की कोशिश करना,लेकिन लडके के दिमाग में तो केवल गांव के लोगों के साथ बैठना शराब पीना और रात को पत्नी को परेशान करने के अलावा और कोई काम भी समझ में नही आता था। एक दिन गुस्से में आकर लडके को मार पीट दिया,लडका शाम को शराब पीकर आया और कमरे में फ़ंदा लगाकर खुद को समाप्त कर लिया। आज धन्नाराम जवान बहू और दो मंद बुद्धि बच्चों को पाल रहे है,अपने किये की सजा को भुगत रहे है,उनकी पत्नी बच्चे के गम से अंधी हो गयी है,ट्रेक्टर बोरिंग सभी बेकार पडे है।

नाम शेर सिंह (बदला हुआ नाम) उत्तर प्रदेश पुलिस

रहन ग्राम जिला मैनपुरी में बहुत मशहूर है राजपूतों सहित लगभग सभी जाति के लोग इस गांव में निवास करते है,सबसे अधिक स्वतंत्रता संग्राम सैनानी इसी ग्राम में पैदा हुये है। इसी गांव के शेर सिंह अपने पिता की तीसरी संतान है,और उत्तर प्रदेश पुलिस में नौकरी करते है,एस ओ की पोस्ट है,कभी किसी थाने में और कभी किसी थाने में उनकी ड्यूटी रहती है। उत्तर प्रदेश का हाल अगर देखा जाये तो पुलिस के मामले में बहुत खराब है,वहां की पुलिस राजनेताओं की कठपुतली है,जैसा नेता के द्वारा कहा जाता है वहां की पुलिस को वैसा ही करना पडता है। शेर सिंह की शादी पुलिस में ऊंची पोस्ट पर भर्ती हो जाने से जाने माने फ़र्रुखाबाद के राजपूत परिवार से हुयी,दो पुत्र और एक पुत्री उनके पास हैं,उनकी पत्नी भी पढी लिखी है और ग्रामीण शिक्षक के रूप में कार्यरत है। नौकरी के दौरान जैसा किसी नेता के द्वारा कहा जाता है उसी प्रकार से शेर सिंह को करना पडता है,इसी गांव के पास ही एक गांव है उस गांव के जुआरी ने अपने प्रधानी के चुनाव के दौरान गांव की दूसरी पार्टी को जबरदस्ती चुनाव हराने के लिये अपनी गति विधि को जारी रखा,एस सी एसटी की अधिक मान्यता होने के कारण गांव के जाटव परिवारों को अपनी पार्टी में रखा और दूसरी पार्टी के लोगों को नीचा दिखाने के लिये उनके द्वारा झूठी रिपोर्टें पास के थाने में लगवाने का काम करने लगा,जाटव भी अपनी अपनी गतिविधियों और शह मिलने के कारण अपने किये जाने वाले कामों को छोड कर मैनपुरी और आसपास के एरिया में ट्रेनों से अटैची चुराना रास्ते चलते लोगों को लूटना,राहजनी करना और गांवों के आसपास कोई सम्पर्क सडक नही होने से रात को डकैती डालने का काम चालू कर दिया। लेकिन विरोधी पार्टी को झुकता नही देखकर उसने अपने पुत्रों सहित दिन के बारह बजे विरोधी पार्टी पर सीधी गोलीबारी कर दी,परिणाम में खुद का एक पुत्र और एक लडका विरोधी पार्टी का मारा गया। पास के थाने में रिपोर्ट लगाने की बात हुयी विरोधी पार्टी पहले थाने पहुंच नही पायी और खुद ही जाटवों का साथ लेकर वह थाने जा पहुंचा। थानेदार शेर सिंह ने दूसरी पार्टी को भी बुलाया और लेन देन का मामला चला विरोधी पार्टी ने कुछ भी देने से मना कर दिया गया,और वह रिपोर्ट बजाय दोपहर की गोलीबारी की रात की गोलीबारी में परिवर्तित कर दी गयी,दस साल मुकद्दमा चला और विरोधी पार्टी के दो शरीफ़ लोगों पर आक्षेप देकर उन्हे आजीवन कारावास की सजा मिल गयी। शेर सिंह ने अपने कारणों से कई शरीफ़ लोगों को बदमास भी बना दिया,जैसे किसी की दुश्मनी किसी से हुयी वह शेर सिंह से जाकर मिला,और शेर सिंह की बताई गयी रकम को उसने दे दिया तो शेर सिंह ने उस व्यक्ति की दुश्मनी चलने वाले व्यक्ति को तलाशा और प्रार्थना पत्र अपने अनुसार बनवा कर जिला के पुलिस कप्तान से मिला दिया या और अधिक ऊंची पदवी वाले व्यक्ति के पास पहुंचा दिया,उससे उस प्रार्थना पत्र पर थाने के लिये की जाने वाली कार्यवाही के अन्दर उस दुश्मनी वाले व्यक्ति को गिरफ़्तार कर लिया और जो भी केश पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार लगाना था लगा दिया और शरीफ़ व्यक्ति को धारा तीन सौ छिहत्तर आदि से लांछित कर जेल भेज दिया,नही तो नारकोटिक्स एक्ट की धारा लगाकर जेल भेज दिया,या फ़िर चार सौ चौवन की धारा लगाकर और आसानी से एरिया में मिलने वाले हथियार साथ में दिखाकर जेल भेज दिया। इस प्रकार की राजनीति के अन्दर शेर सिंह ने काफ़ी माल कमाया। उनके दिमाग में माल को खर्च करने के लिये एक उपाय आया कि क्यों न एक बढिया सा घर गांव में बनवाया जाये,घर बनाने की कार्यवाही चालू हुयी एरिया के ठेकेदारों और मजदूरों से कार्य करवाया जाने लगा,कोई भी पैसा मांग नही सकता था,सभी को डर था कि पता नही शेर सिंह किस धारा और कानून में उन्हे अन्दर करवा दे। घर बनकर तैयार हुआ और बडा सा हाल और कई कमरे बनकर तैयार हो गये,गांव की पैठ और अपनी इज्जत को और ऊंचा दिखाने के लिये गृह प्रवेश करवाया गया,भोजन और पंगति की गयी और सभी परिवार सहित उस घर में निवास करने लगे,पचपन साल की उम्र में आकर पुत्र और पुत्र वधुये उसी मकान में रहने लगे। गांव होने के बावजूद भी सभी सुख और आराम के साधन घर में इकट्ठे हो गये,पुत्रों को नौकरी के लिये इंटरव्यू आदि के लिये जाना पडता था,वे भी अपनी नौकरी इसी प्रकार से करना चाहते थे,इसलिये काफ़ी उम्र हो जाने पर भी नौकरी उन्हे नही मिली। बरसात का मौसम आया पूरा परिवार घर के अन्दर बरसात का लुत्फ़ ले रहा था,गर्म पकौडे आदि बहुयें बना रहीं थी थानेदारिन भी मजे से अपने परिवार के साथ मौज में थी,अचानक समय बदला और पूरा लेंटर (आर सी सी) एक साथ गिर पडी,पूरा परिवार ईंटों और पत्थरों के नीचे दब गया,पूरे गांव में कोहराम मच गया,बरसात जोर से होने के कारण और सर्दी का दिन होने के कारण जो बचाना भी चाहते थे वे भी देर से पहुंचे दो बहुयें जो रसोई में थी बच गयी,उनमें से एक लंगडी हो गयी और दूसरी बेदाग बच गयी बाकी दोनो पुत्र और थानेदारिन उसी आर सी सी के नीचे परलोक सिधार गये। आज शेर सिंह उन्ही दोनो बहुओं के साथ अपनी मौत के आने का और तिल तिल कर मरने का इन्तजार कर रहे है,उनकी जो बहू बेदाग बच गयी थी वह अपने मायके में है और पता चला है कि वह भी किसी गलत संगति में फ़ंस गयी है।