शुक्रवार, 10 दिसंबर 2010

कर्मगति: गोवंश का प्रतिकार

कर्मगति: गोवंश का प्रतिकार: "भारत कृषि प्रधान देश रहा है,और भारत की धरती जाति पांति धर्म धरती से हमेशा असमानता के अन्दर समानता को लेकर चलती रही है। गोवंश की बढोत्तरी के ..."

गोवंश का प्रतिकार

भारत कृषि प्रधान देश रहा है,और भारत की धरती जाति पांति धर्म धरती से हमेशा असमानता के अन्दर समानता को लेकर चलती रही है। गोवंश की बढोत्तरी के लिये किसी भी जाति ने कभी प्रतिकार नही किया,और किसी भी धर्म ने अपनी बेदखली नही दिखाई। गाय के लिये हिन्दू की मान्यता केवल इसलिये मानी गयी थी कि गाय के गोबर में भी इतनी इनर्जी होती है कि किसी भी कच्चे स्थान पर उसकी लिपाई के बाद वहां का बाह्य वातावण अपने आप शुद्ध होकर खुद में शक्तिवान होजाता है। इसके प्रयोग के लिये वैज्ञानिकों ने जो शोध किये उसके अनुसार जो कैमिकल ड्राई बैटरी में डाला जाता है और उसके अन्दर जो पतली पर्त लेई की लगाई जाती है,उसके सूख जाने पर बैटरी बेकार हो जाती है उस बैटरी को गाय के गोबर को पानी से घोल कर उसके अन्दर सीरीज में कुछ समय रखने के बाद वह बैटरी महीनो कार्य के लिये प्रयोग में लाई जा सकती है। इसके उपयोग के लिये जहां बिजली की कमी है और बिजली नही पहुंच सकती है वहां के लोगों ने इस क्रिया को खूब प्रयोग करना शुरु किया और वे आज भी रात के समय मिट्टी के तेल की चिमनी की जगह एल ई डी को लगाकर और इस बैटरी का प्रयोग कर रहे है। इसके अलावा स्वस्थ भारत के लिये स्वस्थ सन्तान की जरूरत मानी जाती है,कितनी ही अन्ग्रेजी दवाइयां प्रयोग में लायी जाती रहें लेकिन जो बात गाय के दूध में देखी जाती है वह किसी भी पोषक आहार में नही मिलती है। गाय के दूध के कम होते ही अधिकांश लोग किसी न किसी बीमारी के मरीज हो गये और वे आजीवन अस्पतालों के चक्कर लगाने के लिये मजबूर हो गये। इसके बाद गोवंश की समाप्ति की ओर जाने के प्रति लोगों को होश जब आया जब उन्हे पता लगा कि अन्ग्रेजी दवाइयों के प्रयोग करने और उन दवाइयों के प्रयोग से शरीर को मिलने वाली ऊर्जा क्षणिक होती है उस ऊर्जा को केवल कुछ समय के लिये ही प्रयोग में लाया जा सकता है उसके बाद शरीर बेकार हो जाता है,शरीर की शक्ति की पूर्णता के लिये लोगों ने और भी विकल्पों का आवाहन किया कोई मल्टी विटामिन और कोई मांस अंडा आदि के लिये भागा लेकिन वह तत्व शरीर में नही जा पाये जिनसे शरीर को संचालित करने वाले तत्वों की पूर्ति हो सकती थी,यहां तक कि शरीर के अन्दर गर्मी के पैदा होने के बाद कामुकता बढने लगी और स्त्री पुरुषों की तरफ़ और पुरुष स्त्री की भागने के लिये मजबूर होने लगा उसके लिये समाज में अनैतिकता का भूकंप सा आगया,आज शादी होती कल अपनी इच्छा की पूर्ति नही होने पर लडके लडकियां सम्बन्ध विच्छेद करने के बाद दूसरे मर्दों और स्त्रियों की तलाश में लगने लगे,किसी को पता नही चलता कि कौन किसका बाप है और कौन किसकी माता है। इस प्रकार चलन से वही भारत की धरती जहां एक भाई अपने भाई के लिये जान देने को तैयार हो जाता था वहीं एक भाई ही दूसरे भाई का दुश्मन बनने लगा,इसकी आड में राजनीतिक लोगों ने भी अपनी खूब रोटियां सेंकी जिसे जहां दिखा वह उसी दिशा का फ़ायदा उठाकर अपने स्वार्थ की पूर्ति करने लगा और समाज की इस निर्बलता को समाप्त करने के लिये जो मुहिम शुरु की गयी उसके द्वारा दुबारा से उसी पुराने भारत की निर्माण प्रक्रिया को चालू करने का आवाहन किया जाने लगा। गाय को पालने के लिये लोग ग्रामीण परिवेश में अपने को स्वतंत्र मानते है,वह केवल घास फ़ूस से अपना पेट भरती है,जमीनी उपजों के अन्दर गोबर से ह्यूमश की मात्रा अधिक होने से जो भी फ़सल होती है वह शक्तिवान और शरीर को ऊर्जा देने वाली होती है,इसके अलावा बछडों को पालकर जब बैल का रूप दिया जाता है तो वे खेती किसानी के काम में बडे ही सहायक होते है,धरती की असमानता के अन्दर बैल ही अपने बल का प्रयोग कर पाने में समर्थ होते है मशीनी खेती को कितना ही बल दिया गया लेकिन वह जमीन को उस काबिल नही कर पायी जिससे कि जमीन के अन्दर के पोषक तत्व फ़सलों को मिल सकते उसके बाद भी जो जमीनी कारण बनते है उनके अनुसार छोटे खेत और ऊबड खाबड खेत तो बंजर ही रहने लगे कारण ट्रेक्टर आदि उस जमीन को जोत ही नही पाते थे। पानी के साधनों का प्रयोग भी बढा लेकिन वे भी अपना कार्य नही कर पाये कारण जहां पानी की अति आवश्यक्ता है वहां पानी के लिये ट्यूबबैल लगाये जाने लगे उन्होने पहले से जमा धरती के अन्दर के पानी के स्त्रोतों को सुखा डाला और जो भी किसान की मेहनत और धन था सभी बरबाद होने लगा,बैलों के प्रयोग से समय पर जुताई होने से और गहरी जुताई होने से बरसने वाला पानी जमीन के अन्दर चला जाता है,जैसे ही सर्दी की ऋतु शुरु होती है और ऊपरी सतह ठंडी होती है वही बरसात का पानी धरती की गर्मी के कारण ऊपरी सतह की तरफ़ आना शुरु हो जाता है और रबी वाली फ़सलें अगर पानी कम भी बरसा तो वे पनप जाती थी,इसके अलावा जो फ़सलें पैदा होने लगी उनके अन्दर अधिक पैदावारी करने के चक्कर में पोषक तत्व लगभग न के बराबर ही मिलते,केवल फ़ाइबर की अधिकता से उदर पोषण होजाता था लेकिन अन्न से जो शरीर को बल मिलता था वह न के बराबर था,अन्न के साथ में जो सब्जी भाजी या अन्य कोई वस्तु ली जाती तो वह शरीर को चलाने के लिये अपनी कुछ शक्ति देती रही। कमजोरी के कारण जो भी किसान या गरीब तबके के लोग थे वे मशीनी खेती के कारण बेकार से होने लगे उनका पलायन शहरों की तरफ़ होने लगा और खेती वाले कार्य से उनका दिमाग दूर हो गया,वे भी उसी भीड चाल में शामिल हो गये,फ़ाइबर से पेट भर लेना और पडे रहना जो भी कार्य मिला उसे किया और फ़िर किसी न किसी कार्य की तरफ़ अपना दिमाग घुमा लिया। दूध की अधिकता के लिये जरसी गायों का चलन भी शुरु हुया लेकिन दूध और बछडों में दम नही होने से वह दूध भी केवल चाय के लिये उत्तम रहता अलावा पीने के बाद कोई शक्ति नही और न ही कोई दम,जरसी गाय के बछडों को खेती के काम में भी नही लिया जा सकता था इसलिये उन्हे कसाई को बेचने के अलावा और कोई औचित्य ही नही,जिस धरती पर गोवध के लिये महर्षियों ने मना किया था और कहा था कि जिस दिन इस धरती पर गोवध होने लगेगा उस दिन से भारत की सभ्यता और भारतीयता का अन्त होने लगेगा,वही होने लगा सन्तान बिगडने लगी,माता पिता दुखी होने लगे सन्तान अपने अनुसार चलने लगी अधिक दिक्कत हुयी तो विदेश को पलायन करने लगी,वर्ण शंकर पैदाइस होने के बाद खुद के पुत्र को ही पता नही होता है कि खुद का बाप कौन है और जब खुद के खून का पता नही है तो लगाव होगा कहां से।