शुक्रवार, 19 नवंबर 2010

जैसे को तैसा कर्म की बलिहारी

कल शाम को जयपुर से ही एक अवधेश मिश्राजी मेरे पास आये थे,अपने कार्यों से परेशान थे,जो भी कार्य वे हाथ में लेते पहले तो फ़ल बहुत अच्छा सामने आता लेकिन कुछ समय पश्चात वही काम खराब होने लगता और जो भी फ़ल मिलना होता वह एक दम समाप्त हो जाता। कार्य के अन्दर भी कोई भूल या कमी रहती वह भी नही मालुम होती,केवल फ़ल प्राप्त करने के समय जरूर कोई न कोई बात सामने आजाती। उनकी कुण्डली देखी तो कन्या लगन की कुण्डली थी,मंगल केतु तुला के होकर दूसरे भाव मे और राहु अष्टम में विराजमान था। नवे भाव में चन्द्रमा ग्यारहवे भाव मे वक्री गुरु छठे भाव मे सूर्य बुध और सप्तम में शुक्र शनि की युति। कहने को तो साधारण कुण्डली थी लेकिन हर काम को अक्समात समाप्त करने के लिये कौन सा ग्रह सामने था,इसके बारे में काफ़ी खोजबीन करने के बाद एक बात सामने आयी कि चन्द्रमा के पीछे अष्टम का राहु है,यह राहु ही कार्यों को अपने अपने अनुसार खराब करता चला जा रहा है। लेकिन राहु आखिर में कुंडली में है क्या,इस बात की खोज बीन करने के लिये मैने उनसे कुछ प्रश्न पूंछे.

उनका जन्म उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जिला में बोरडीह गांव में हुआ था,उनके पिताजी दो भाई और तीन बहिन तथा खुद भी चार भाई और चारों ही इधर उधर.सूर्य को पिता और बुध को बहिन कुन्डली के अनुसार माना जाता है,राहु को दादा की श्रेणी में जाना जाता है,राहु जब अष्टम स्थान में होता है तो माना जाता है कि दादा को मुक्ति नही मिली है और वे शमशान के निवासी है,जब तक दादा को मुक्ति नही मिलेगी तब तक दादा जो आत्मा के रूप में है जातक और जातक के परिवार वालों को किसी न किसी रूप में कष्ट देता ही रहेगा।

दादा के रूप में राहु का स्थान अष्टम में होने से सबसे पहले दादा और फ़िर पिता और पिता के बाद जातक के बारे में सोचा जाता है कि पाप और कुकृत्य की शुरुआत कहां से हुयी। मैने पूंछा कि दादा कितने भाई थे,उनका जबाब था कि दो,मैने पूंछा कि बडे दादा की स्नेह तुम्हारे से कितना था,तो बोले के मेरे खुद के दादा से मेरे बडे दादा मुझे बहुत चाहते थे,और उस जमाने में वे जब किसी काम से दूसरे गांव में जाते तो उन्हे पानी पीने के लिये मनुहार में जो पेडे मिला करते थे वे एक दो खाकर बाकी के जेब में डालकर मेरे लिये घर लेकर आते थे,और अपनी चौपाल में मुझे बुलाकर चुपचाप मुझे ही खिलाया करते थे,जिससे घर के बाकी के बच्चे और बडे उन पेडों को ले न लें। वह जब अपने काम के लिये घर से बाहर निकले तो उनके दादा जी उनके ही गम से एक साल के अन्दर परलोक सिधार गये।

इसका मतलब बडे दादा का स्नेह उन पर अधिक था,और इसी स्नेह के कारण वे अक्सर तुम्हारे कार्यों के अन्दर दखल दिया करते है,और इस दखल का परिणाम तब अधिक मिलता है जब यह पता लगे कि आखिर उनका स्थान अष्टम में कैसे गया,कोई तो उनके द्वारा पाप किया गया होगा जिससे उन्हे मुक्ति नही मिली और वे अभी तक शमशान के अन्दर ही अपनी आत्मा को लेकर पडे है,जिसे नर्क के नाम से जाना जाता है।

राहु के ठीक सामने मंगल केतु के होने से किये जाने वाले पापों की गिनती मिलती है,अगर राहु अष्टम में है तो माना जाता है कि राहु मौत के घर में है और उसने जो पाप किया है वह दूसरे भाव में है जो प्रत्यक्ष रूप से दिखाई देता है। दूसरे भाव में मंगल अगर तुला का है तो खूनी वार करने वाला माना जाता है और केतु के साथ है तो किसी हथियार से सोच समझ कर वार करने के बाद की जाने वाली हत्या के मामले में जाना जाता है। इसी भाव को दूसरे स्थान पर परिवर्तित करने के बाद पता चलता है कि केतु को कुत्ता की श्रेणी में लाया जाता है और मंगल से खूनी रूप सामने लाने पर खूनी कुत्ता का रूप सामने होता है,यानी मंगल केतु को भेडिया के रूप में माना जा सकता है। मैने उनसे बोला कि आपके बडे दादा ने कुत्ते जैसे जानवरों को मारा था,उन्होने जबाब दिया कि हां मेरे दादा बताया करते थे कि उनके घर के पास में ही एक भेडिया ने अपनी मांद बनायी थी और उस मांद में उस भेडिया के जोडे ने सात बच्चों को जन्म दिया था,एक दिन उन्हे पता लगा तो वे मांद के बाहर लट्ठ लेकर बैठ गये थे,एक एक बच्चा जैसे ही मांद से बाहर निकलता वे एक ही लट्ठ के बार से उसे मारते जाते,इस तरह से उन्होने सातों बच्चों को मार डाला था। बाद में मादा भेडिया रात रात भर पूरे गांव में और आसपास के क्षेत्र में भटक भटक कर चिल्ला चिल्ला कर एक दिन तालाब मरी मिली थी।

इसका परिणाम उनके साथ यह हुआ कि उनके भी सात लडके पैदा हुये और वे एक एक करके मौत को प्राप्त हुये कोई छत से गिरकर मरा कोई तालाब में डूब कर मरा कोई आग से जल कर मरा कोई कुये में गिरकर मरा,सातों पुत्रों के मरने के बाद पहली दादी की मौत भी सर्दी के दिनों में पारसूत वाली बीमारी से हो गयी थी। फ़िर दादाजी ने दूसरी शादी की और उनके द्वारा तीन पुत्र और दो पुत्रियां जो आज भी हैं।

इसका मतलब है कि आपके दादाजी के द्वारा जो पाप किया गया था उसकी ऐवज में उनको भी अपने पुत्रों की मृत्यु का बहुत बडा सदमा लगा था,और उनके जो बाद में दूसरी दादी से पुत्र हुये वे उनके अनुसार नही होंगे इसलिये वह तुम्हारे ऊपर अधिक स्नेह रखा करते थे।

उनकी गति नही मिलने के कारण ही तुम्हारा भटकाव मिल रहा है,इसके लिये किसी अमावस्या को अपने बडे दादाजी के लिये गति प्रदान करने वाले कार्यों को करिये जिससे तुम्हारे दादाजी को मोक्ष मिले और वे तुम्हारे लिये फ़लदायी होकर अपने आशीर्वाद को तुम्हे प्रदान करें।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें