सोमवार, 7 मई 2012

सुखी रहना है तो कनफ़्यूजन से बचो

शरीर का मालिक अगर चन्द्रमा बन जाता है तो वह महिने मे बीस दिन अपने को कनफ़्यूजन मे रखने के लिये माना जाता है वही अगर शरीर का मालिक सूर्य बनता है तो साल के पांच महिने कनफ़्यूजन के लिये कहे जाते है जब शरीर का मालिक गुरु बन जाता है तो हर बारह साल में पांच साल कनफ़्यूजन के माने जाते है जब शनि होता है तो हर तीस साल में साढे बारह साल कनफ़्यूजन के माने जा सकते है। बुध मंगल शुक्र के अनुसार भी सूर्य की तरह से कनफ़्यूजन का समय माना जाता है कनफ़्यूजन का कारण बनाने का एक ही ग्रह होता है वह राहु होता है।

हालत तब और खराब हो जाती है जब राहु के गोचर के कारण और जन्म के राहु से ग्रहो का योगात्मक प्रभाव मिलता है। यह दोहरी मार हर व्यक्ति को झेलनी पडती है। सामयिक रूप से गोचर का प्रभाव केवल कुछ समय के लिये मिलता है और वह गोचर का प्रभाव समाप्त होने के बाद आराम देने लगता है लेकिन जब प्रभाव धीमी गति से चलने वाले ग्रहो के साथ हो जाता है तो वह प्रभाव अधिक समय तक चलता रहता है।

समय समय पर मित्र और शत्रु ग्रह अपने प्रभाव से कनफ़्यूजन मे कमी लाने के लिये भी जाने जाते है जैसे चन्द्रमा का कनफ़्यूजन चल रहा है और मंगल की तकनीक मिल जाती है तो वह कनफ़्यूजन भी लाभ देने वाला बन जाता है,लेकिन उसी मंगल का प्रभाव अगर गलत भाव या राशि के अनुसार बनता है तो वह कनफ़्यूजन मे भी मारक प्रभाव देने लगता है।

कनफ़्यूजन लाभ देने वाला तब बनता है जब किसी महत्वपूर्ण काम के लिये सोचना हो और वह सोच अगर कनफ़्यूजन मे जाने के कारण काम को नही किया जाता है और वह काम बजाय खराब होने के बन जाता है तो वह कनफ़्यूजन काम का हो जाता है और वही कनफ़्यूजन जब बनते हुये काम को बिगाडने के लिये अपनी शक्ति को दे दे तो वह हानि देने के लिये बन जाता है।

जन्म के समय का चन्द्रमा अगर राहु से गलत प्रभाव मे है तो वह आजीवन दिमाग को कनफ़्यूजन मे रखता है इस प्रकार के व्यक्ति कभी भी उन्नति को नही कर पाते है और किसी न किसी प्रकार के अन्धेरे मे बने रहते है। यह अन्धेरा उन्हे या तो बहुत अच्छी प्रोग्रेस देने के लिये अपनी शक्ति को देता है या जीवन को सामान्य से भी नीचे की श्रेणी मे ले जाता है।

सोमवार, 30 अप्रैल 2012

कर्म के क्षेत्र का बदलाव और सफ़लता

जीवन की दो गतिया प्रमुख मानी जाती है एक सकारात्मक और एक नकारात्मक। स्त्री पुरुष के भेद को समझने के बाद जीवन की दोनो गतियों का रूप सामने आजाता है। जो लोग सम्पूर्ण होते है वे अपने को नकारात्मक प्रभाव की तरफ़ ले जाकर अपने को और सकारात्मक करने की कोशिश करते है और जो लोग नकारात्मक होते है वह अपने को और अधिक सकारात्मक रूप मे ले जाने के लिये प्रयत्न करने के लिये माने जाते है एक समय आता है कि जो खलई है वह और भी खाली हो जाते है और जो भरे वे और भर जाते है। प्रकृति के नियम के अनुसार जब गर्मी अधिक होती है तो वह नमी को सोखने के लिये मानी जाती है और जब सर्दी होती है तो वह नमी को और अधिक पैदा करने के लिये मानी जाती है। लेकिन अलावा तत्व जब अपना असर देते है तो सर्दी भी गर्मी मे बदल जाती है और गर्मी भी सर्दी मे बदल जाती है। जैसे अधिक नमी होने पर अगर हवा का बहाव शुरु हो जाये तो वह नमी को भी सर्द रूप मे बदल सकता है और जब सर्द माहौल मे हवा का बहाव रुक जाये तो गर्मी की अनुभूति होने लगती है। यही भाव हर प्रकार से जीव के अन्दर भी होता है और जो भी स्थिर और अस्थिर कारक इस संसार मे है सभी का रूप इसी प्रकार से उदय और अस्त होता रहता है। व्यक्ति को सफ़लता के लिये धरातल पर उतरना बहुत ही जरूरी होता है जब तक वह धरातल पर नही उतरेगा उसकी सफ़लता सम्भव नही है। धरातल का चुनाव प्रकृति खुद भी करती है और कभी कभी व्यक्ति अपने धरातल का चुनाव समय के अनुसार भी कर लेता है। इसके विपरीत भी देखा जाता है कि अधिक गर्मी के क्षेत्र मे पैदा होने वाला व्यक्ति अगर अधिक सर्द जगह पर अपना धरातल बना लेता है तो वह अधिक सफ़ल हो जाता है जबकि उस सर्द जगह पर पैदा होने वाला जातक अपने को सिकोड कर ही रखने के लिये माना जाता है यह बात अक्सर तब और समझ मे आती है जब रेगिस्तानी क्षेत्र का व्यक्ति अगर अधिक पानी वाले क्षेत्र मे अपना स्थान बना लेता है तो वह अधिक सफ़ल हो जाता है उसे पानी की एक एक बूंद का मूल्य पता है जबकि पानी वाले क्षेत्र मे रहने वाले व्यक्ति के लिये पानी कुछ भी नही जब वह अपने धरातल को बदल कर अगर रेगिस्तानी इलाके मे चला जाता है तो वह अपने जीवन को बदलने लगता है और अपने अन्य लोगो की अपेक्षा अधिक सफ़ल होता चला जाता है । यही बात एक प्रकार से और भी देखी जा सकती है कि ग्रामीण क्षेत्र का निवासी जब शहरी क्षेत्र मे जाकर बस जाता है तो उसकी सोच जो पहले मान सम्मान इज्जत मर्यादा मे रहती है वह बदल कर अपने खुद के स्वार्थ के लिये बन जाती है और वह जहां पहले सभी के लिये सोचने वाला होता है वहीं पर वह खुद के लिये ही सोचने वाला बन जाता है। यही बात अगर शहरी व्यक्ति के लिये मानी जाये तो वह जब ग्रामीण क्षेत्र मे जाकर अपने को बसाने की कोशिश करता है तो वह पहले तो अपने निजी स्वार्थ की पूर्ति के लिये प्रयास करता है और जब उसके निजी स्वार्थो की बजह से ग्रामीण परिवेश उसे नकारना शुरु कर देता है तो वह उन्ही की क्रिया शैली मे लाने की कोशिश करने लगता है।

एक रसता समरसता और विषमरसता तीन प्रकार के भाव हर व्यक्ति के अन्दर पाये जाते है जब एक ही काम को करने के लिये एक व्यक्ति को विवश कर दिया जाता है तो काम तो किया जाता है लेकिन उस काम के अन्दर जो रुचि होती है,वह उस तरह से नही रह पाती है जो समरसता वाले कारणो मे होती है,इसी प्रकार से हर मनुष्य की सोच मे अगर कोई विषमरसता नही हो तो काम करने के लिये मन नही करेगा,एक बार किसी काम को कर लिया जाये और उस काम के अन्दर कोई सोचने समझने मेहनत करने या जोखिम लेने के लिये कारण नही बन रहे हो तो वह काम नही माना जाता है। लेकिन जो अपने जीवन मे केवल खाना पीना सोना और मौज मस्ती के साधनो मे रहना चाहता है वह किसी प्रकार से विषमरसता के काम करना पसन्द नही करेगा अक्सर इसी कारण से सरकारी क्षेत्र की नौकरियों मे लोगो का रिझान होता है कारण यह होता है कि वहां पर उन्हे लगता है कि उनका भविष्य धन आदि से भी सुरक्षित है और उनके परिवार मे भी कोई दिक्कत आती है तो उन्हे सरकार की तरफ़ से लाभ मिल सकते है। लेकिन जो हमेशा विषमरसता के कारणो मे रहना चाहते है और रोज एक रिस्क लेकर काम करना चाहते है उनके अन्दर एक प्रकार का भाव यह होता है कि वे कुछ भी करे अपने ग्यान और बुद्धि के बल पर करे उन्हे किसी की भी सहायता की जरूरत नही होती है तो वे विषमरसता के काम आसानी से कर भी सकते है और जब भी उन्हे लगता है कि उनकी जरूरत पूरी नही हो पा रही है तो वे बडे रूप से अपने को जोखिम मे ले जा सकते है यहां तक उन्हे अपने जीवन की परवाह भी नही होती है जैसे रक्षा सेवा और खतरे वाले काम करने वाले लोग अपने अनुसार अपनाने के लिये आगे आते है।

बदलाव की स्थिति के लिये आप अच्छी तरह से समझ सकते है कि जब कोई व्यक्ति राजस्थान से आसाम या दक्षिण भारत की तरफ़ पलायन करता है तो वह अपनी स्थिति को जीरो से हीरो बनाने की रखता है,वह अपने को जमीन से उगाकर आगे बढने के लिये अपनी योग्यता को दिखाने और सम्पूर्ण गति को प्रदान करने के बाद पानी की कीमत को समझने वाला होता है वह विकट परिस्थिति मे काम को कर सकता है कारण वह सूखे और रेगिस्तानी इलाके मे पैदा हुआ है उसने जन्म से लेकर बडे होने तक अपने को अभावो के क्षेत्र मे रखा है उसके द्वारा जो भी कमाया जायेगा वह जोड कर रखा जायेगा और उस जोडे हुये धन तथा ग्यान से वह और आगे बढने की योग्यता को बनाने की कोशिश करता रहेगा इसके अलावा भी कई कारण और भी है जैसे उसे किसी प्रकार के ग्यान और मनुष्य शक्ति की जरूरत पडेगी तो वह अपने ही इलाके के व्यक्ति को पहली मान्यता देगा जिससे उसे एक तो अपने एरिया के व्यक्ति पर भरोशा भी होगा और वह उस एरिया के व्यक्ति को समझता भी होगा कि अगर वह कोई बेईमानी करता है तो वह उसे अपने स्थान पर जाकर पकड सकता है इसी प्रकार से जब जब कोई व्यक्ति सरसब्ज इलाके से रेगिस्तानी इलाके मे जायेगा तो उसे भीड और चालाकी वाले कारणो से दूर होना पडेगा जहां वह अपनी बुद्धि को प्रकट करने के बाद अपनी योग्यता को दिखाने से डरत था वह रेगिस्तानी इलाके मे लम्बी सोच को रखने के बाद अपनी बुद्धि को अच्छी तरह से प्रकट भी करेगा और मन चाहा काम करने के बाद मेहनत करने वाले लोगो का फ़ायदा भी लेगा तथा पनप भी जायेगा इसके लिये एक बात और भी समझी जा सकती है कि जो व्यक्ति अभावो वाले क्षेत्र मे पैदा होता है वह अपने स्थान बदलाव के बाद एक ऐसी स्थिति को देखता है जहां पर कोई अन्य व्यक्ति उसी प्रकार के काम को नही कर रहा हो। यह बात अक्सर मारवाडी जाति के लिये कही जाती है कि वह जहां कोई साधन नही जा सकता है वहां पर मारवाडी आराम से पहुंच कर अपनी योग्यता को प्रयोग मे ला सकता है इसलिये कहा भी गया है कि - "जहाँ न पहुँचे घोडी,वहाँ पहुँचे मारवाडी".उसी प्रकार से सेवा के मामले मे और बुद्धि के मामले मे भी कहा गया है कि -"जहाँ पहुँचे बंगाली,वहाँ न रहे कंगाली",एक काम के अन्दर एक बिहारी व्यक्ति सौ काम निकालने की हिम्मत रखता है और जो साधारण लोग होते है केवल एक ही काम को करने मे विश्वास रखते है वह कहने लगते है कि -"एक बिहारी सौ बीमारी",आदि कहावते समाज मे चल रही है।

एक बात और भी मानी जाती है कि जब व्यक्ति एक ही स्थान पर रहता है तो उसे कोई भी छोटा काम करने मे शर्म महसूस होने लगती है या उसी के परिवार मे या घर मे कोई व्यक्ति जब बडी पोस्ट पर पहुंच जाता है तो छोटी बुद्धि या कमजोर व्यक्ति अपने को आगे नही बढा पाता है उसे लगता है कि अगर वह कोई छोटा काम करता है तो वह अपने समाज मे ही छोटा गिना जायेगा वह अपने को स्थान बदलाव मे ले जाता है और अपनी शक्ति से अपने को आगे बढाने के लिये शुरु हो जाता है तो वह आगे बढने लगता है।