रविवार, 21 नवंबर 2010

मौत कब और कैसे ?

मृत्यु अटल सत्य है,संसार में जो पैदा हुआ है वह मौत के मुँह में तो जायेगा,उसे कोई बचा नही सकता है,जल जल में चला जायेगा,आग आग में मिल जायेगी,मिट्टी मिट्टी में मिल जायेगी,हवा हवा से जाकर मिल जायेगी,लेकिन जो बचेगा वह आत्मा के नाम से पुकारी जाने वाली हस्ती। ज्योतिष के अनुसार आठवें भाव को मौत का भाव जाना जाता है,और इसी भाव से अक्सर जीवन की गति को प्रकट किया जाता है,लेकिन आठवें भाव को भी बल देने वाले तो और भाव माने जाते है,चौथा भाव भी आठवें भाव से अपनी मान्यता को जोडता है और बारहवां भाव भी आठवें भाव से सकारात्मक रूप से जुडा है। इन तीन भावों के द्वारा अपनी जीवनी पूर्ण करने पर ही वास्तविक मृत्यु होती है और जीव की गति अन्य जीवन की तरफ़ पलायन कर जाती है,फ़िर से जीवन चक्र शुरु हो जाता है,वह हो चाहे किसी भी रूप में। जीवन को बरसात के पानी की तरह मानना एक अच्छा उदाहरण है,समुद्र में पानी की स्थिति है और गर्मी और हवा के सहारे वह भाप के रूप में आसमान में उठता है,जहाँ भी उसकी प्रकृति के अनुसार जलवायु मिलती है वह बरस जाता है। फ़िर किसी स्थान पर बरस कर या तो धरती के अन्दर चला जाता है और धरती के अन्दर बहने वाले स्त्रोतों से नदियों में और फ़िर जाकर समुद्र मे मिल जाता है या सीधा बहकर नदियों के द्वारा जाकर सागर में मिल जाता है।

मौत को बारह प्रकार से माना जाता है,पहला शरीर की मौत से दूसरा भौतिकता की मौत से तीसरा प्रदर्शन की मौत से चौथा मानसिक रूप से मृत पांचवां मन्दबुद्धि होकर जिन्दा रहकर भी एक लाश की तरह शरीर को ढोने वाली मौत और छठवा किसी प्रकार से बडी बीमारी से ग्रसित होकर अस्पताल या घर के किसी कोने में पडे रहकर मौत से भी बदतर जीवन जीने वाली बात सातवां अपने को दुनिया के सामने असमर्थ मानकर और अपने विरोधी का वह चाहे व्यक्ति हो कार्य हो या व्यवस्था के सामने असहाय हो जाना आठवां हमेशा किसी न किसी बात में अपमानित होते रहना मनुष्य रूप में भी जन्म लेकर जानवरों जैसे माहौल में रहना घोर अघोर को भोजन के रूप में ग्रहण करना और घर की बजाय शमशान या जंगलों में रहना नवें प्रकार में जिस पिता या समाज या धर्म में जन्म लिया है उसका परित्याग करके रहना अपने देश और समाज को छोड कर दूसरे देश और समाज की व्यवस्था को संभालना अपने देश और समाज की व्यवस्था की बुराई करना और पितरों जिन्होने इस शरीर को प्रदान करने के लिये पहले से अभी तक की व्यवस्था को कायम रखा उसे भूल जाना दसवें प्रकार की मौत में कार्य को करने की बुद्धि होने के बावजूद भी कार्य नही करना कार्य करने का बल नही होना और कार्य होने पर भी कार्य को नही करना ग्यारहवीं तरह की मौत में अपने ही लोगों के सामने लाचार हो जाना अपने द्वारा जीवन यापन के लिये कोई प्रयास नही करना जो संगी साथी है उनके द्वारा जगह जगह पर नीचा देखना अपने ही भर के सदस्यों में जाकर अनबन कर लेना तथा बारहवीं प्रकार की मौत किसी अनाथालाय में पलना और किसी की गोद चले जाना अपने को दुनिया के मोह से दूर कर लेना और सन्यास ले लेना आजीवन कारावास जैसी सजा को भुगतना आदि मौतें मानी जाती है।

ग्रह के अनुसार अपनी अपनी मौत देने के कारण पैदा होते रहते है,वैसे तो इस शरीर को चौबीस घंटे के अन्दर इक्कीस हजार छ: सौ बार जिन्दा और मरना पडता है,लेकिन जन्म के समय जब तक माता की गोद में रहते है तो दूसरे के सहारे ही रहते है किसी प्रकार की जोखिम से अपने को बचा नही सकते है समाज और व्यक्ति की सहायता और दया पर पलते है जब तक दिमाग से अपने को बचाने और अपने को सुरक्षित रखने के लिये कारण नही बनाते तब तक एक जीवित की संज्ञा में नही माना जा सकता है। सच्ची जिन्दगी वही होती है जो अपने पीछे वालों को अपने आगे वालों को सही मार्ग सही व्यवस्था और सही जीवन जीने के लिये उनका हक देकर जिन्दा रहा जाये। वैसे शनि को सबसे अधिक जीवन देने वाला मानते है,लेकिन जब शनि भी चन्द्रमा से दूसरे भाव में गोचर करता है तो व्यक्ति को मानसिक रूप से आहत कर देता है उसके सभी पराक्रम समाप्त हो जाते है और जिनसे भी वह अपने कार्यों के लिये कहता है या जिन कार्यों को करता है वे सभी अपने अपने स्थान पर बर्फ़ की तरह से जम जाते है कोई भी जीवन की गति में पूरक नही होता है,वह समय भी एक मौत से कम नही होता है,उसके बाद शनि जब भी सूर्य से दूसरे भाव में होता है तो लोगों के अहम का शिकार होना पडता है जिसे देखो वही रौब गांठ कर चल देता है समर्थ होते हुये भी लोगों की राजनीति में रहकर काम करना पडता है और अपने तरह से कार्य को करते ही कोई न कोई आक्षेप लगना शुरु हो जाता है तो वह भी मौत से कम नही होता,जब तक प्राणी स्वतंत्र रूप से कार्य करने का अधिकारी नही है तब तक उसे कैसे जीवन रखने के लिये माना जाये,जीवन का वास्तविक अर्थ वही है जो कि व्यक्ति खुद की बुद्धि से खुद के बाहुबल से खुद के विचारों की स्वतंत्रता से जिन्दा रह सके।

अक्सर कहा जाता है कि जिसका लगनेश चन्द्रमा होता है उसको जब भी जन्म के शनि से और गोचर के शनि से चन्द्रमा को दूसरे भाव में आना पडता है उसे किसी न किसी प्रकार का मानसिक क्षोभ पैदा हो ही जाता है। लेकिन उसे जिस प्रकार के क्षोभ मे आना पडेगा वह शनिके भावानुसार देखना पडेगा,अगर शनि मकर राशि का है तो उसे जीवन साथी की बातों और व्यवहारों से और शनि अगर बारहवें भाव में बैठा है तो उसे अन्जान लोगों और जेल आदि की प्रताणनाओं से क्षोभ पैदा होगा। महिने में सवा सात दिन तो चन्द्रमा को शनि के फ़ेरे में आना ही होगा,इसी लिये कर्क राशि वाले अधिक भावुक होते है,और अपनी भावनाओं के अनुसार अपने में ही अपने को समेटे रहते है।

मिथुन राशि को केवल शरीर की मौत से डर लगता है उसे मान अपमान क्षोभ आदि से कोई शिकवा नही होता है,कारण वह कठोर के सामने मुलायम और मुलायम के सामने कठोर बनने में देर नही लगती है। जब भी कोई गहरी बात आती है तो हल्की बात करने लगते है और हल्की बात के सामने गहरी बात करने लगते है अपनी चित्त और पट दोनो होने के कारण तथा बातूनी स्वभाव होने अपने घर की बात किसी को नही बताने और दूसरे के घर की बातो को आराम से अपने प्रयासों से प्राप्त करने में चतुर होने के कारण अपमानित होने पर भी अपनी बातूनी आदत से अपने को समझा लेते है,जहां पर कोई जोखिम का काम आता है वहां से दूर भाग लेते है,इन कारणों में एक ही बात को मुख्य माना जाता है कि उनकी चौथे भाव की गरिमा को बुद्ध कायम रखता है और अष्टम भाव की गरिमा को शनि तथा बारहवे भाव की गरिमा को शुक्र कायम रखता है।

मौत ग्रह की होती है मौत कभी जीव की नही होती है जीव तो चराचर जगत में हमेशा से हमेशा के लिये मौजूद है। पाराशर का नियम भी है कि हर भाव का बारहवां भाव उसका विनाशक होता है। धन की मौत शरीर देता है,प्रदर्शन की मौत धन देता है,सुख की मौत प्रदर्शन से होती है,विद्या और परिवार की मौत खुद के सुखी रहने से होती है,कर्जा दुश्मनी बीमारी की मौत विद्या और परिवार के द्वारा मानी जाती है,वैवाहिक सुख और जीवन साथी की मौत कर्जा दुश्मनी बीमारी और दासत्व भावना से होती है,रिस्क लेने वाले कार्यों के अन्दर खुद को जोखिम में ले जाने वाले कारणों की मौत जीवन साथी और साझेदार के द्वारा होती है,धर्म भाग्य और सामाजिक सुख और मर्यादा की मौत अपमान्जोखिम धर्म परिवर्तन और सामाजिक व्यवस्था के अन्दर विदेशी मान्यताओं को शामिल करने से होती है,कार्य की मौत धर्म और भाग्य के सहारे चलने से मानी जाती है,मान अपमान और सामाजिक संस्कार के चलते कार्य नही किये जा सकते है,मित्रता की मौत और बडे भाई का अपमान पिता की औकात को अपना लेने से होती है और अधिक धन की चाहत तथा दूसरों से अधिक जुडना मानसिक शांति और आगे बढने के कारणों से मौत का कारक माना जाता है।

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