गुरुवार, 23 सितंबर 2010

अहम किसके लिये ?

वाल्मीकि का आतंक जब चरमसीमा पर पहुँच गया तो प्रकृति ने न्याय के लिये सप्तऋषियों को भेजा। लूटने की प्रक्रिया में माहिर वाल्मीकि ने उन सप्त ऋषियों को भी लूटने की प्रक्रिया अपनायी। सप्त ऋषियों ने उनसे कहा कि आप हमें लूट लो कोई बात नहीं,आप हमें मारडालो कोई बात नहीं,आप हमारे शरीर को घायल कर दो कोई बात नहीं,लेकिन हमारे एक प्रश्न का उत्तर दे दो,वाल्मीकि के सामने ऐसा उदाहरण कभी जीवन में नही आया था,उन्होने जिसे भी लूटा था वह या तो कातरता से चिल्लाता था,या अपनी जान और माल को बचाने के लिये उनसे बच कर भागने की कोशिश करता था,लेकिन इस प्रकार की बात कोई नही करता था कि लूट भी लो मार भी डालो घायल भी कर दो,लेकिन प्रश्न का जबाब देदो। उन्होने अपने को संभाला और उत्सुकता वश प्रश्न करने के लिये कहा। सप्तऋषियों ने प्रश्न किया कि- " यह लूटने का और हत्या करने का उद्देश्य क्या है ? यह सब कार्य किसके लिये कर रहे हो,इस किये जाने वाले कार्य का भुगतान जब प्रकृति देगी तो उसकी सजा कौन कौन भुगतेगा?",वाल्मीकि जी ने बडी ही आसानी से जबाब दिया कि वे अपने परिवार के पालन पोषण के लिये यह कार्य कर रहे है,और उनके द्वारा किये जाने वाले कार्य का उद्देश्य केवल अपना और अपने परिवारी जनों के पालन पोषण का है,और जब प्रकृति सजा देगी तो जो लोग उनके साथ परिवार में है सभी को सजा भुगतने का अधिकार होगा",इतने जबाब को सुनकर उन सप्तऋषियों ने प्रश्न किया कि पहले अपने परिवारी जनों से पूँछो कि वे तुम्हारे द्वारा किये गये पापों की सजा को भुगतने के लिये राजी हैं,अगर वे सभी राजी है तो हम लुटने के लिये,मरने के लिये और घायल होने के लिये तैयार हैं,वाल्मीकि जी ने बडी मजाकिया मुद्रा में जबाब दिया कि वाह जब तक मै सबसे पूँछने जाऊँ,तब तक तुम सभी दूर भाग जाओ,सप्तऋषियों ने उनसे सभी को बन्धन देने और जाकर पूँछने के लिये कहा। वाल्मीकि जी ने सभी सप्तऋषियों को पेडों से बांध कर जिससे वे भाग न जायें,अपने परिवारी जनों से पूंछने के लिये गये। दरवाजे पर उनकी माताजी पिताजी के साथ विराजमान थी,उन्होने अपने पुत्र को आते ही भावनापूर्ण शब्दों में वातसल्य भाव से कहा,कि उनका बेटा कार्य करने के बाद घर आया है उसके भोजन पानी की पूर्ति की जाये,वाल्मीकि जी अपने कार्य को अधूरा छोड कर आये थे,उन्होने आते ही अपनी माताजी और पिताजी से पूँछा कि वह जो कार्य कर रहे है उस कार्य की पाप पुण्य की सजा भोगने के लिये क्या वे भी उनका साथ देंगे,माता पिता ने साफ़ शब्दों में जबाब दिया कि उन्होने अपने माता पिता के कर्तव्य को पूरा करने के बाद ही अपने बुढापे में पुत्र के सहायता की आशा की है,पुत्र क्या करता है उन्हे कोई पता नही है,पुत्र पाप से कमा कर लाता है या पुण्य से कमाकर लाता है उन्हे उससे कोई लेना देना नही है,वह केवल यह जानते है कि पुत्र अपने कर्तव्य का पालन कर रहा है,और जो भी कार्य पुत्र करेगा,उसके पाप पुण्य का अधिकारी खुद पुत्र ही होगा,माता पिता उसके किसी भी पाप पुण्य के अधिकारी नही होते है। वाल्मीकि जी के मसिष्क में विचार कौंधा कि जब माता पिता ही उनके द्वारा किये गये पापों के अधिकारी नही है तो वह अपने माता पिता के पालनपोषण के लिये पाप क्यों करते है,कोई बात नही उनकी पत्नी और भाई बहिन बच्चे ही उनके किये गये पापों में भागीदार होंगे उन्होने से बारी बारी से सभी से प्रश्न किया,सभी ने यही जबाब दिया कि वे उनके लिये कार्य कर रहे है,और वह उनके लिये कार्य कर रहे है,जो पाप से कार्य कर रहा है वह पाप के लिये और जो पुण्य से कार्य कर रहा है वह पुण्य का अपने अपने कर्मों से खुद ही पाप और पुण्य का अधिकारी है,कोई भी किसी के पाप और पुण्य को करने का अधिकारी नही बन सकता है। वाल्मीकि जी को ज्ञान हो गया,वे सोचने लगे कि जब उनके किये गये कार्यों का कोई पाप का अधिकारी नही बनना चाहता है तो वह क्यों सबके लिये पाप किये जा रहे हैं,उन्हे उन सप्तऋषियों का ख्याल आया,वे वापस उसी वन में उनके पास भागे और उन्हे बन्धन मुक्त करने के बाद उनके पैरों पर गिरकर उनके द्वारा किये गये पाप की माफ़ी मांगी,और उनसे पूर्व समय में किये गये पापॊ की मुक्ति के लिये उपाय पूँछा। सप्तऋषियों ने जबाब दिया कि वे नाम सहारा लें और नाम को स्मरण करते रहें,उन्हे "राम" का नाम स्मरण करने के लिये जपने के लिये कहा गया,लेकिन जो व्यक्ति जीवन भर केवल मारने का ही काम करता रहा हो वह भला राम को कैसे जप सकता था,वह इस नाम को कैसे स्मरण कर सकता था। राम को जाप करने की बजाय वे "मरा मरा" जपने लगे,लगातार मरा मरा जपने के बाद उनकी जुबान से राम राम शब्द की उत्पत्ति होने लगी,और वही वाल्मीकि जी महान वाल्मीकि ऋषि की श्रेणी में आये,माता सीता को उन्होने अपने सानिध्य में रखा और वाल्मीकि कृत रामायण का निर्माण करने के बाद अपनी रामायण को राम पुत्र लव और कुश के द्वारा राम दरवार में सुनाया।

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