शनिवार, 9 अक्तूबर 2010

गुरु देता है जीव को गति

गति को बनाने के लिये जीवन में गुरु का साथ जरूरी है। गुरु अगर साथ दे रहा है तो जीवन में किसी भी बात की कमी नही रहती है। गुरु के पूर्ण समर्थन देने पर सभी प्रकार के साधन जीव को उपलब्ध हो जाते है। कहते है हवा का माफ़िक होना गंतव्य तक पहुँचाने के लिये काफ़ी होता है। गुरु की स्थिति कुंडली में देखे जाने पर ही व्यक्ति के जीवन का अच्छा या बुरा समय मालुम किया जाता है,बाकी के ग्रह तो गुरु के सहायक ही माने जाते है। गुरु बक्री भी होता है मार्गी भी होता है और अस्त भी उदय भी होता है,अपने अपने प्रकार से अपने प्रभाव को जातक को देता है जिससे जातक का जीवन चलता रहता है।

गुरु मार्गी होने पर जीव को सामान्य गति देता है गुरु बक्री होने पर जीव को जल्दबाजी की आदत देता है। गुरु के मार्गी होने पर संसार के सम्बन्ध सामान्य गति से चला करते है और गुरु के बक्री होने पर सम्बन्ध पलट भी जाते है,गुरु सम्बन्धो का कारक भी है। गुरु के प्रभाव जातक को उच्च और नीच के फ़ल भी मिलते है,उच्च के गुरु वाला जातक अधिकतर आज के जमाने के लोगों से दुखी ही रहता है। नीच के गुरु का व्यक्ति आज के जमाने के लोगों के साथ चलने वाला होता है। गुरु राशियों के प्रभाव को भी जीवन मे देता है,गुरु जिस राशि में होता है उसी के अनुसार अपना प्रभाव देता है। गुरु की राशियां धनु और मीन मानी जाती है,लेकिन गुरु नवें भाव में और बारहवें भाव में होने पर भी अपना असर धनु और मीन राशि का समिश्रित करके देता है। धनु का गुरु भाग्यवान भी बनाता है और देश विदेश से फ़ायदा भी देता है,लेकिन धनु राशि का छ: आठ या बारहवें भाव में होने पर वह अपने फ़लों में कमी या बढोत्तरी कर लेता है।

गुरु धन देने का भी कारक है,गुरु बैंक बीमा और फ़ायनेन्स से भी सम्बन्ध रखता है। गुरु से अष्टम चन्द्र अपमान देने का भी कारक होता है। गुरु हवा के साधनों के रूप में माना जाता है,इसलिये गुरु का प्रभाव जब चन्द्रमा से छठा और आठवां होता है तो वह भय और पौरुषता में कमी भी देने का कारक हो जाता है। गुरु मंगल के साथ मिलकर सम्बन्धों की तकनीक को जानने लगता है वैदिक धर्म के अन्दर तकनीकी बातों को भी करने लगता है। गुरु के उपायों के लिये धर्म स्थान पर जाना भी ठीक रहता है,गुरु से सम्बन्ध जो बिगड रहे होते है उनके अन्दर राहु के मिलाने से खून खराबे भी होते देखे गये है।

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