शुक्रवार, 28 जनवरी 2011

देश काल परिस्थिति

धर्म कर्म और पूजा पाठ के लिये देश काल और परिस्थिति को समझना जरूरी है। अगर लोग सुबह चार बजे नहाने के लिये अपने को शुरु से तैयार रखते है और वे अगर किसी ठंडे स्थान में जाकर नहाने का उपक्रम करते है तो उन्हे शर्तिया अपने शरीर को बीमार करना पडेगा,और नही तो वे अपने को ठंडे मौसम की वजह से कुछ न कुछ तो परेशान करेंगे ही,इसके अलावा अगर उनके रहने वाले स्थान में समय की अधिकता है और बाहर जाकर समय की कमी है तो भी जो कार्य उन्हे देर में करने की आदत है उन्हे वह जल्दी से करने के लिये भी तैयार होना चाहिये। साथ ही ध्यान में रखना जरूरी है कि अगर परिस्थिति वश कोई सामान जो पूजा पाठ के लिये नही मिलता है तो निम्न या मानसिक पूजा पाठ ही करना सही रहेगा। देश काल और परिस्थिति को समझ कर ही आराधना के कितने ही नियम बनाये गये है। जो लोग बहुत समय रखते है उनके लिये भजन गाना और कीर्तन करना बताया गया है,जो लोग समय कम रखते है उनके लिये सुबह शाम की पूजा और आरती आदि ही बहुत होती है और जिनके पास कर्म करने के बाद समय की बहुत ही कमी है उन्हे सोते और जगते समय अपने आराध्य के नाम लेने से भी वही फ़ल प्राप्त होगा जो लोग पूरे दिन भजन कीर्तन आदि करने के बाद प्राप्त करते है।

इस भाव के लिये एक मिथिहासिक कहानी कही गयी है,एक बार ब्रह्मा पुत्र नारद जी को घंमंड हो गया कि वे भगवान विष्णु के बहुत बडे भक्त है और उनके अलावा इस संसार में कोई बडा भक्त नही है,कारण उनकी जुबान पर हर क्षण नारायण नाम का शब्द रहता है,और जब इस नारायण नाम का शब्द प्रति स्वांस में साथ है तो कौन उनसे बडा भक्त पैदा हो सकता है। भगवान अन्तर्यामी है और अपने भक्तों के भाव को समझते भी है,भगवान विष्णु जो नारायण रूप में है उन्हे मालुम चला कि नारद को घमंड पैदा हो गया है। उन्होने अपने पास नारद को बुलाया और समझाया कि तुम अपने में घमंड नही पालो,तुमसे बडे भी भक्त इस संसार में है। नारद ने एक का पता पूंछा और उसके पास जा पहुंचे,देखा वह एक साधारण किसान है और सुबह अपने खेतों पर काम पर चला जाता है और शाम को अपने घर आकर सो जाता है। बीच में जो भी घर के काम होते है उन्हे करता है अपने परिवार के पालन पोषण के लिये जो भी कार्य उसके वश के है उन्हे करता है। जागने के बाद केवल तीन बार नारायण नारायण नारायण का नाम लेता है और सोने के समय तीन बार नारायण नारायण नारायण का नाम लेता है और सो जाता है। नारद जी को बहुत गुस्सा आया और वे नारायण के पास जा पहुंचे और कहने लगे प्रभू वह एक किसान है और केवल दिन भर में छ: बार नारायण नारायण नारायण नारायण नारायण नारायण कहता है वह उस भक्त से बडा हो गया है तो चौबीस घंटे में इक्कीस हजार छ: सौ बार नारायण का नाम लेता है। विष्णु रूप नारायण समझ गये कि नारद को समझ कम है,उन्होने अपनी माया से एक उपक्रम का निर्माण किया और एक ज्योतिषी को बुलाया,अपने ऊपर राहु केतु और शनि की स्थिति को समझने के लिये प्रश्न किया,ज्योतिषी ने अपने प्रतिउत्तर में जबाब दिया कि आने वाले समय में शनि देव का ठंडा और अन्धकार युक्त समय का आना हो रहा है,इसलिये शनि का उपाय करना जरूरी है,उसने एक कटोरा सरसों का तेल मंगवाया, और नारायण की प्रदिक्षणा करने के लिये पास में उपस्थित नारद जी को इशारा किया साथ ही यह भी उपदेश दिया कि प्रदक्षिणा में तेल की बूंद जमीन पर नही गिर पाये। नारद जी ने बडी सावधानी से तेल का कटोरा लेकर धीरे धीरे प्रदिक्षणा करना शुरु कर दिया,और कुछ समय में पूरी करने के बाद व कटोरा ज्योतिषी को पकडा दिया,वह ज्योतिषी कटोरे को लेकर पास में खडे एक कीकर के पेड पर चढाने के लिये चला गया । नारायण ने नारद से पूंछा कि जितने समय में तुमने मेरी प्रदक्षिणा की उतने समय में तुमने मेरा कितनी बार नाम लिया ? इतना सुनकर नारद जी ने कहा कि अगर वे अपने ध्यान को नाम में ले जाते तो जरूरी था कि तेल कटोरे से नीचे जमीन पर गिर जाता ! नारायण ने नारद से जबाब दिया कि वह किसान अपने गृहस्थी रूपी तेल के कटोरे को लेकर चल रहा है और फ़िर भी छ: बार नारायण का नाम ले लेता है,तो तुम्ही सोचो कि कौन बडा भक्त है,नारद को समझ आ गयी थी कि कौन बडा भक्त है।

1 टिप्पणी:

  1. देश काल और परिस्थिति के अनुरूप कार्य = पुण्य
    देश काल और परिस्थिति के विपरीत कार्य = पाप

    जवाब देंहटाएं